साठवें जन्मदिन पर
25 मई की सुबह एक लगभग हम-उम्र दोस्त की साठवें
जन्मदिन की अग्रिम बधाई मिली। सठियाने की पूर्वसंध्या पर बेदर्दी से आत्मावलोकन
करते हुए मैं पहले से ही बहुत उदास था,
उदासी पर एक क्षणिका लिखा गई. उदासी विलासिता (लक्ज़री) है तथा हम गरीब हैं. यह
डायलागा पता नहीं किस बात पर 40 साल पहले बोल दिया था. उदासी करुणा, समानुभूति,
आदि की तरह एक मानवीय प्रवृत्ति है, उसी तरह जैसे शर्म एक क्रांतिकारी फीलिंग है.
उदासी का सबब था आत्मकथा लिखने की सामग्री का अभाव. उसने ढाढ़स दिया कि आत्मकथा की
सामग्री नहीं तो जिसकी है उसकी लिखो. लगता है जिंदगी में ऐसा कुछ किया ही नहीं
जिसे वर्णित किया जाय. उसने मेरे जितने काम गिनाया, लगा वे तो मेरे जीने के तरीके
का हिस्सा है. और मुझे अपना ही एक और डायल़ॉग याद आया, जो मैं अपने
औपचारिक-अनौपचारिक स्टूडेंट्स से शेयर करता रहता हूं. ‘’ ज़िंदगी जीने का कोई
जीवनेतर उद्देश्य नही है। एक सार्थक, नैतिक, ईमानदार जिंदगी जीना अपने आप में एक
संपूर्ण उद्देश्य है। बाकी अनचाहे उपपरिणामों की तरह साथ लग लेते हैं।“मेरे विचार से
करनी-कथनी की एका का निरंतर प्रयास नैतिक जीवन की अनिवार्य शर्त है. शाम 5.30 बजे गांधी
शांति प्रतिष्ठान में आपातकाल की बरसी पर जनहस्तक्षेप-पीयूसीयल की सालाना मीटिंग
के संचालन की याद ने उदासी से मुक्ति को मजबूरी बना दिया. रूसो ने कहा है कि किसी
को भी जनहित का उल्लंघन नहीं करने दिया जायेगा. दूसरे शब्दों में हर किसी को जबरन आज़ाद
किय़ा जायेगा। चाय बनाकर प्रस्ताव लिखने बैठ गया। मीटिंग अच्छी हुई। विषय था,
आपातकाल की आहट? इस उम्र में कुलदीप नैय्यर तथा कुलदीप नैय्यर सरीखों की सक्रियता
प्रेरणादायी है. इस तरह के कार्यक्रमों में समय-निवेश की बावत इस अंधे युग में
जनवादी चेतना के प्रसार में इनके प्रभाव पर मैं हमेशा खुद से सवाल करता हूं तथा
खुद ही जवाब देता हूं कि न करके भी क्या कर लेंगे?
सठियाने
का भौतिक-बौद्धिक असर पहले ही दिन से दिखने लगा। दिन में बैठा मित्रों का
आभार व्यक्त करने और देने लगा प्रवचन। मेरी बेटी तो कहती है कि मैं बहुत पहले से
सठियाया हुआ हूं। फेसबुक पर तथा फोन पर इतनी बधाइयां मिलीं कि गद गद हो गया. सारे
दोस्तों का तहे दिल से शुक्रया अदा करता हूं।
बधाई हो काका
ReplyDeletekhush raha bachava
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