Mahrukh Jafar आपकी बात कि इंसान अपने कर्मों की सजा इसी दुनिया में काट कर जाता है, संयोगवश कभी सही हो सकती है, अक्सर उल्टा ही होता है. 1990-91 में मनमोहन ने नरसिंह के साथ मिलकर मुल्क बेचना शुरू किया उसके फलस्वरूप 1904 में खुलकर विश्वबैंक की दलाली का मौका मिला जो 10 साल रहा तथा जबतक जियेगा, लुटियन्स दिल्ली में सरकारी खर्च से खाकी सुरक्षा में कई एकड़ जमीन पर काबिज रहेगा. अटल ने मनमोहन द्वारा शुरू मुल्क की नीलामी को तेज कर दिया, वह भी जब तक जियेगा सरकारी पैसे से लुटियन्स दिल्ली में एक सुरक्षित कोठी में काबिज रहेगा. अभूतपूर्व नरसंहार का अायोजन करके मोदी 14 साल गुजरात लुटाता रहा जिससे अब मुल्क की खुलेआम नीलामी का मौका मिल गया. बाजपेयी-मनमोहन-मोदी कैसे भी मरें इनके गुनाहों की सजा मुल्क इंकिलाब आने तक भोगता रहेगा.
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