Monday, June 22, 2015

कहीं और चलें

इसी लिए कहता हूं चलो कहीं और चलें
कहीं ऐसी जगह जहां तुम कह सको
और मैं समझ सकूं तुम्हारी बात
यहां की दीवारों से टकरा कर आने वाली प्रतिध्वनि 
शोर बन जाती हैं 
चलो वहां चलें जहां दीवार न हो
न हो जहां डीजे का कान फाड़ू तमाशा
या भगवती जागरण का हो-हल्ला
न हों जहां गांव के चौपाल की शातिर तिकड़में
या शहरी मशक्कत की भागमबाग
अफवाहों की गर्म बाजार न हो
शतरंज की सियासी चाल न हो
जहां हम हों और हमारा जमीर
चलो कहीं और चलें
जहां सुन सकूं तुम्हारे मुखर मौंन की आवाज़
और कह सकूं मन की बात
यहां तुम कुछ कह नहीं पाती 
और मैं अनकहा सुनकर भी समझ नहीं पाता
(ईमिः 22.06.2015)

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