इसी लिए कहता हूं चलो कहीं और चलें
कहीं ऐसी जगह जहां तुम कह सको
और मैं समझ सकूं तुम्हारी बात
यहां की दीवारों से टकरा कर आने वाली प्रतिध्वनि
शोर बन जाती हैं
चलो वहां चलें जहां दीवार न हो
न हो जहां डीजे का कान फाड़ू तमाशा
या भगवती जागरण का हो-हल्ला
न हों जहां गांव के चौपाल की शातिर तिकड़में
या शहरी मशक्कत की भागमबाग
अफवाहों की गर्म बाजार न हो
शतरंज की सियासी चाल न हो
जहां हम हों और हमारा जमीर
चलो कहीं और चलें
जहां सुन सकूं तुम्हारे मुखर मौंन की आवाज़
और कह सकूं मन की बात
यहां तुम कुछ कह नहीं पाती
और मैं अनकहा सुनकर भी समझ नहीं पाता
(ईमिः 22.06.2015)
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