Dewanshu Dwivedi मित्र, अापके विचारों से मैं अवगत नहीं हूं, अक्षय ने सिर्फ नारा दिया है विचार नहीं.सही कह रहे हैं दुनिया द्वंद्वात्मक है. हमारा राष्ट्रवाद पर विश्वास नहीं यह हमने कब कहा, राष्ट्रवाद राष्ट्र-राज्य की विचारधारा है. समंतवादी शासन की वैधता का स्रोत ईश्वर था तथा धर्म उसकी विचारधारा , नई व्यवस्था -पूंजीवाद - के राजनैतिक प्रबंध के लिए राष्ट्र राज्य का उदय हुआ, वैधता का नया स्रोत सहमति बनी तथा राष्ट्रवाद उसकी विचारधारा-नारा. पूंजी के भूमंडलीय हो जाने से राष्ट्रवाद का मतलब भी बदल गया है. नारे भावनाओं पर आधारित होते हैं, वह भी जरूरी है लेकिन वैचारिक परिपक्वता के बिना महज नारे लफ्फाजी बनकर रह जाते हैं, इतना समय-निवेश आप से वाद-विवाद के लिए नहीं सिखाने के मक्सद से करता हूं, आप नहीं सीखेंगे तो शायद अन्य लोग सीख लें. मजदूर का कोई राष्ट्र नहीं होता न पूंजी का. हम जनक्रांति के जरिये शोषण-अ्समानता से मुक्त समाज बनाना चाहते हैं, जिसके लिये वैज्ञानिक, जनवादी जनचेतना की जरूरत है, इन विमर्शों में समय व्यय उसी दिशा में योगदान का प्रयास है. फिलहाल जमीन तथा दिमाग पर करपोरेटी हमले को रोकने की जरूरत है, सीबीसीयस जैसे खतरनाक शिक्षा योजना तथा भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष की जरूरत है, इस मोर्चे पर सक्रिय ताकतों का सहयोग करें
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