नहीं जानता क्यों लिखता हूं कविता
लेकिन लिखता हूं कविता
इल्म नहीं बिंब-प्रतीकों के तिलस्म का
फिर भी लिखता हूं कविता
नहीं मालुम अमिधा-व्यंजना का रहस्य
तब भी लिखता हूं कविता
नावाकिफ हूं छंद-ताल के नियमों से
मगर छोड़ता नहीं लिखना कविता
अनभिज्ञ हूं मात्रा-लय कि मजमून से
बावजूद इसके लिखता हूं कविता
कह सकूं मन की बात
शायद इसीलिए लिखता हूं कविता
भले ही लोग कहें सपाटबयानी
जब तक करेगा मन लिखता रहूंगा कविता
(ईमः29.06.2015)
No comments:
Post a Comment