Thursday, June 18, 2015

गीता पाठ

गीता पाठ
वह कहता है लोग गीता पढ़ें करें और योग
धनपशु जिससे कर सकें बेखटक राजभोग
गीता है महाभारत में एक मनुवादी प्रक्षेपण
देती है जो विवेक की तालाबंदी का प्रशिक्षण
मेहनतकश की तो दिनचीर्या ही है संपूर्ण योग
जरूरत यह उनकी करते जो बिन मेहनत भोग
एक ग्वाला जब धनुर्धर का सारथी बन जाता
जादू के सम्मोहन में विकराल रूप दिखाता
खुद को सर्वज्ञ और सृष्टि का श्रोत बतलाता
चमत्कृत धनुर्धर हो वशीभूत दंडवत हो जाता
मदारी को माता पिता गुरु सबकुछ मान लेता
बन स्वयंभू विधाता देता धनुर्धर को उपदेश
बिन सोचे समझे मानो प्रभुओं का आदेश
धर्मयुद्ध के नाम पर करवाता जनसंहार
भरता दिलों में युद्धोंमादी हिंसक विचार
हिंसा से विरक्ति को बतलाता जघन्य पाप
मरने वाला कोई भी हो दादा भाई या बाप
चिंता के बिन फल के देता कर्म का उपदेश
दुनया को देता रक्तपात का पुनीत संदेश
फेकता है भक्तिभाव का एक मोहक जाल
बुनता है तब स्वर्ग-नर्क का जटिल मायाजाल
पूंजीवाद की तरह पैदा करता है मन में वहम

बढ़ने के लिए आगे बनना है बिल्कुल बेरहम
जीतने पर देता है छलावा भोगने का संसार
हारने पर खुल जायेंगे बैकुंठलोक के द्वार
दिखाता डर पिछड़ने का लगाने पर दिमाग
दुनिया में मची है जीतोड़ भागम्भाग
छिपा लेता है चुपड़ी बातों में युद्ध का निहितार्थ
कि पीछे है इसके शासक वर्गों के निजी स्वार्थ
जंग तो खुद है एक खतरनाक ऐतिहासिक मसला
ये क्या साधेगा कोई भी सामाजिक मामला
कि जीतता नहीं कोई भी जंग में हारता है आवाम
रक्तरंजित धरती बन जाती है भयावह शमसान
हर तारीक़ी दौर में जंग चाहता है जंगखोर
निःसंकट राज करे आवाम पर जिससे हरामखोर
और भी बहुत कुछ छिपाता है यह विधाता
भक्तिभाव में जिसको भी बाधक है पाता
हर शासक आवाम को पढ़ाता है गीता
इससे ठगने में लोगों को होती जो सुभीता
पढ़ो गीता मगर लगा कर दिमाग
छल-फरेब के जाल में लगा दो आग
अंत में भक्त जनों को देता हूं यह संदेश
बिन विचारे मानो मत किसी प्रभु का आदेश
चिंतनशक्ति है विशिष्ट इंसानी प्रवृत्ति
अन्यथा करता वह खुद की पशुवत पुनरावृत्ति
चिंतन जब मुल्तवी कर देता इंसान
खींचता है ज़िंदगी पशुओं के समान
जीना है अगर इंसानी सम्मान के साथ
गीता के उपदेशों को मारो तगड़ा लात
(ईमिः 19.06.2015)

नोटः कल रात फेसबुक पर एक कमेंट में ठीक-ठाक कविता लिखा गई थी ई-अल्पज्ञान के चलते गायब हो गयी. सारी सुबह, काफी कोशिस के बात भी वह बात नहीं आ पायी. वही बात वैसे भी बीते पलों की तरह दुबारा नहीं आती. 

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