Monday, June 15, 2015

सियासत 15

Nishant Gupta इतिहास के बारे में यह न होता तो क्या होता का कयास बेमानी है. इतना जरूर है यदि कांग्रेस सरकार ने देश की नीलामी तथा विश्वबैंक की मातहती में शिक्षा व्यवस्था की ऐसी की तैसी न की होती तो अाज एक जघन्य नरसंहार का आयोजक देश का मुखिया न होता. दर-असल कांग्रेस तथा भाजपा दोनों ही भूमंडलीय पूंजी के एजेंट हैं. फर्क है कि कांग्रेस के पास विहिप-बजरंग दल जैसे लंपट गिरोह नहीं हैं. राडिया डेप में मुकेश अंबानी ठीक ही कहता है कि दोनों उन्हीं की दुकानें हैं. बाजपेयी सरकार ने नरसिंह राव की नीतियों को त्वरित किया तथा मोदी अाक्रामकता के साथ मनमोहन यानि विश्वबैंक की नीतियों को त्वरित कर रहा है. विश्व बैंक के रखैल अर्थशास्त्रियों का एक गिरोह है जो खुद को स्कूल ऑफ न्यू पोलिटिकल इकॉनमी कहता है, उसका मानना है कि विकासशील देशों में नवउदारवादी संक्रमण के लिये निर्ममता से बल प्रयोग की जरूरत है, जिसके लिये अधिनायकवादी सरकार ज्यादा उपयुक्त है. इन देशों के राजनेता जाहिल हैं और किसी भी कीमत पर सत्ता में रहना चाहते हैं इस लिये "अच्छे लोगों की भलाई" के लिए बुरी सरकार खरीद लो. वह यह भी कहते हैं कि इन नीतियों को लागू करने के लिये जनविरोधी कदम उठाने की जरूरत होगी तथा बेरहमी से बलप्रयोग की. सरकारी दल जाहिर है बदनाम हो जायेगा, दूसरी दुकान को आगे कर दो. वह सारी बुराइयों का ठीकरा पिली सरकार के सिर फोड़ कर सफाई के बहाने समय के तर्क पर काम आगे बढ़ाये. इस तरह पालतू मोहरों को अदल-बदल कर इन देशों का विकास(विनाश) जारी रहना चाहिये. हर युग के शासक वर्ग अपने गौड़ तथा अक्सर कृतिम अंतरविरोधों को बढ़ा-चढ़ा कर समाज के प्रमुख अंतर्विरोध के रूप में पेश करता है जिससे समाज का वास्तविक, रोजी-रोटी के अंतरविरोध की धारअंरविरोध की धार कुंद की जा सके. आज जब कि प्रमुख अंतरविरोध भूमंडलीय साम्राज्यवाद तथा भूमंडलीय आवाम के बीच है, कॉरपोरेटी मीडिया तथा बुद्धिजीवी साम्राज्यवाद की दो एजेंट फार्टियों के कृतिम आंतरिक अंतर्विरोध को ही उछाल रहे हैं. लेकिन दुनिया का आवाम जिस दिन मुकेश अंबानी के दावे का निहितार्थ समझ जायेगा, कॉरपोरेटी पूंजीवीद के साथ उसके ज़रखरीद वफादारों का भी अंत कर देगा. तब तक दोनों खेल लें आपस में कंचा.

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