इश्क
ईश मिश्र
इश्क कीजिये ज़िंदगी से इस कदर
कि गम-ए-दिल गम-ए-जहाँ से मिल जाए
ज़िंदगी की खूबसूरती का निखार हो इतना
कि मौत दुम दबाकर भाग जाए
मुहब्बत दुनिया से हो इतनी
कि उसीमें माशूक भी समा जाए
इश्क किया जमाने से न थी माशूक की चाह
हर मोड पर मिलते रहे महबूब आसान बनी राह
इश्क किया जमाने से न थी माशूक की चाह
हर मोड पर मिलते रहे महबूब आसान बनी राह
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