Sunday, September 9, 2012

इश्क


इश्क 
ईश मिश्र 

इश्क कीजिये ज़िंदगी से इस कदर
कि गम-ए-दिल गम-ए-जहाँ से मिल जाए
ज़िंदगी की खूबसूरती का निखार हो इतना
कि मौत दुम दबाकर भाग जाए
मुहब्बत दुनिया से हो इतनी 
कि उसीमें माशूक भी समा जाए

इश्क किया जमाने से न थी माशूक की चाह 
हर मोड पर मिलते रहे महबूब आसान बनी राह


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