भगत सिंह का सपना
ईश मिश्र
१
ईश मिश्र
१
भगत
सिंह का सपना था एक शोषण-मुक्त समाज
नहीं बजेगा
जिसमे फिरकापरस्ती या जात-पांत राग
पूंजी का समुचित
बंटवारा होगा आयेगा समाजवाद
मगर बना यहाँ
गोरे की जगह काले अंग्रेजों का राज
गुलामी की कगार
पर है फिर से हिन्दुस्तान
होगा अब कभी भी
नए भगत सिंहो का आगाज
२
चूमकर
फंदा फांसी का
लगाया था
उन्होंने जब नारा-ए-इन्किलाब
गूँज गया था
भारत भर में
राजगुरु-सुखदेव
भगत सिंह जिंदाबाद
इन्किलाब-ए-इन्किलाब
जिंदाबाद जिंदाबाद
दी थी कुर्बानी
शहीदों ने पूरा करने को यह सपना
देश होगा आज़ाद
राजा आप-अपना
बनेगा भारत एक
स्वतंत्र समाजवादी संघ
न होगा कोई राजा
न ही कोई रंक
नामुमकिन होगा
मनुष्य का मनुष्य से शोषण-दमन
खुशहाली मेहनतश
की फैलाएगी चैन-ओ-अमन
सदियों की
गुलामी के बाद मिली जब आज़ादी
इसकी बागडोर
काले अंग्रेजों को थमा दी
सहेली बनी जिनकी
खूनी विदेशी पूंजी
शहीदों की शहादत
की थाती गँवा दी
बीते नहीं थे
अभी पचास भी साल
तार-तार हुई
आज़ादी और मुल्क बेहाल
आठ रूपये का
डालर था सन उन्नीस सौ अस्सी में
पचास पार कर गया
अब सुधारों की बेताल-पचीसी में
पुरानी से इतनी
अलग है नई गुलामी
लार्ड क्लाइव की
जरूरत हो गयी है अब बेमानी
मीर जाफर बन गए
हैं सारे-के-सारे राजारानी
गिरवी रख दिया
इन्होने अपने सभी किरानी
आया है जबसे
भूमंडलीकरण का राज
मेहनतकश हो गया
है रोजी-रोटी का मोहताज
सरकारें देती
जंगल-जल-जमीं पर कारपोरेटी कब्जा
कब पैदा होगा
युवकों में अब भगत सिंह सा जज्बा
ज़ुल्म बढ़ता है
तो मिट जाता है
खुद-ब-खुद नहीं
मिटाना पड़ता है
करता हूँ आज
नवजवानों का आह्वान
मिटा दें इस नई
गुलामी के नाम-ओ-निशान
बन भगत सिंह ले
आयें एक सुन्दर, नया बिहान
२९.०९.२०१२/२०:२३
बजे
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