सिद्धांत और व्यवहार के एकता के अर्थों में, ईमानदारी मनुष्य की स्वाभाविक, सहज प्रवृत्ति है और बेईमानी समाजीकरण (या संस्कारों) का प्रभाव है. आत्सात वांछनीय सिद्धांतों को व्यहार-रूप देने के लिए समय की नहीं आत्मबल की आवश्यकता होती है. बेईमान माहौल में ईमानदारी की ज़िंदगी जीने के कष्ट इतनी ताकत देते हैं कि नयेपन के अज्ञात भय से मुक्ति मिल जाती है. इसकी प्रमुख शर्त है: 'इस पार प्रिये तुम हो मधु है उस पार न जाने क्या होगा?' सिंड्रोम' से निकल कर, गृहीत संस्कारों से विद्रोह और लीक से हट कर नए के अन्वेषण का साहस.
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