अरस्तू बहुत बड़ा दार्शनिक था लेकिन उसने अपने दार्शनिक ज्ञान का इस्तेमाल दास-प्रथा पर आधारित मर्दवादी अभिजात्य समाज का औचित्य साबित करने में किया. किसी भी लेखक का लेखन (यदि कापी पेस्ट का मामला न हो) उसके आचरण/अनुभव से निकले उसके विचारों की अभिव्यक्ति है. एक शिक्षाक होने के नाते मेरा मानना है कि अच्छा शिक्षक होने के लिए अच्छा इंसान होना जरूरी है. जरूरी नहीं है इसका उलटा भी सही हो. यही मान्यता मेरी अच्छे लेखक/लेखन के बारे में भी है.
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