Friday, September 7, 2012

लल्ला पुराण ३६: विज्ञान और अंध विशवास.

लल्ला पुराण ३६: विज्ञान और अंध विशवास.
लल्ला चौराहे पर मेरे एक आत्मीय गुरु, भौतिकशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने अपने जीवन में जन्मतिथि के अंकों के योग, ८, के महत्त्व को रेखांकित करते हुए, numerology की प्रामाणिकता का दवा किया. उस पर मेरा यह कमेन्ट:


सर, मेरी जन्मतिथि के अंकों का योग संयोग से ८ है, हो सकता है कि मेरे प्रति आपके स्नेह का कारण यह अंक-तंत्र का विस्वाश हो, लेकिन मैं आपके उस समय के कई प्रिय शिष्य मित्रों को जनता हूँ जिनकी जन्मतिथियों के अंको का योग ८ नहीं है. सोचिये आपके जीवन की वे सुखी क्षण जिनमे ८ की संक्या का योग न हो. मेरे दादा जी साईत-मुहूर्त के इतने पक्के अनुयायी थे कि खेत सूख जाए लेकिन बिना मुहूर्त के खेत में हल नहीं जाएगा. इसका एक उदाहरण देता हूँ. १२व साल की उम्र में नदी के बीहड़ के ऊबड़-खाबड़ रास्ते से पैदल की  ७ कोस की दूरी पर मेरा जूनियर हाई स्कूल का परीक्षा केन्द् था. परीक्षा से एक दिन पहले अर्ध-रात्री को यात्रा की शुभ-मुहूर्त थी. रात भर पैदल और दादाजी के कंधे कीयात्रा के बाद, सुबह ७ बजे की परीक्षा के लिए मैं ६ बजे परीक्षा केन्द्र पहुंचा था. नंबर अच्छे आये और माँ लिया गया कि शुभ-मुहूर्त में निकलने से ऐसा हुआ. किन्तु अगले ४ सालों में,१९७२ में इलाहाबाद आने के पहले, विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते और हास्टल से हर हफ्ते लोकल ट्रेन की यात्रा के बाद ७ मील भूत-प्रेतों के अड्डों से होती रात की स्टेसन से घर की पैदल यात्रा के अनुभवों से मैं भूत के भय और तर्क-असंगत सामजिक मान्यताओं और अंध विश्वासों से मुक्त हो चुका था. आजमगढ़ जिले में मेरे गाँव से इलाहाबाद की दिशा दक्षिण मानी जाती है और बृहस्पतिवार  को दक्षिण का दिशाशूल होता है. एडमिसन लेने आने से अगली बार मैं घर स् बृहस्पतिवार को चला था और किसी २-३ दिन की छुट्टी में "छात्र" होने के नाते बिना टिकात यात्रा की आदत थी. संयोग से मजिस्ट्रेट चेकिंग हो गयी मैं समझ नहे पाया और पकड़ा गया. रात भर प्रतापगढ़ जेल में बिताने अगले दिन दादाजी जुर्माना देकर छुडा कर ले गए. इसे दिशाशूल की यात्रा का परिणाम मानलिया गया.  उसके बाद यही जांचने के लिए मुझे जब भी जहाँ से भी दिशाशूल में प्रस्थान का सुअवसर (एक-दो दिन आगे पीछे भी) मिला तो मैं दिशाशूल में ही निकला और दुबारा कोई आफत नहीं आयी. सर, विज्ञान कहता है सच वही जिसका हो ठोस प्रमाण. विज्ञान की गति-विज्ञानं का साश्वत नियम है कि बहुत सी बातें हम जान चुके हैं बहुत सी जानना बाकी है. सांख्यिकी गणित का अपभ्रंश रूप है. सादर .

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