ज़िंदा कौमें विकल्पहीन नहीं होतीँ
इश मिश्र
मुख्तलिफों के हुजूम में छिप जाने के खोखले तर्क
करते नहीं रंडी की दलाली और रामनामी बेचने में फर्क
मजबूरी एक बहाना है कमजोरी छिपाने का
एक लिजलिजा तर्क है भीड़ में खप जाने का
माफीनामा है हवा का रुख न बदल पाने का
साज़िश है अगली पीढ़ियों को विकल्पहीन बनाने की
एक औचित्य है, लीक पर चुपचाप चलते रहने की
नाकाम कोशिसें युवा उमंगों को बरगलाने की
परिवर्तन के प्रवाह की धार कुंद करने की
लेकिन हर अगली पीढ़ी होती हमेशा तेजतर
इतिहास के इस नियम को हम आंकते कमतर
आयेगी ही लेकिन जब जनवाद की आंधी
उड़ जायेंगे सारे-के-सारे यथास्थितिवादी
विकल्पहीनता है निशानी मुर्दा कौमों की
ज़िंदा क़ौमें कभी विकल्पहीन नहीं होतीं
सही कह रहे हैं आप
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