सुमिता जी इस सवाल का जवाब तो लंबा होगा इस लिये कभी फुर्सत मिली तो उसपर एक अलग पोस्ट डालूँगा कि ९-१० कक्षा के लड़के-लड़कियां क्यों इतने आश्चर्य में डालते हैं. वैसे हमारे पिताजी की पीढ़ी भी हम लोगो के बारे में यही कहती थी. मैं जब इंटर में पढता था तो हमारी क्लास का एक लड़का मुझसे दोस्ती करना चाहता था. अच्छा लड़का था लेकिन सिगरेट पीता था. मुझे लगा सिगरेट पीने वाले लड़के से दोस्ती?? नहीं किया. उसके २ साल के अंदर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में डिब्बी जेब में रहने लगी. और सभी लड़के-लड़कियां १६-१९ साल के दौरान नक्सेबाजी में शुरू करते हैं इस अपुष्ट आत्मविश्वास के साथ कि उनकी आदत नहीं पड़ेगी और डिब्बी कब जेब में आ गयी पटा ही नहीं चलता. आजकल लड़कियों को "खुलेआम" सिगरेट पीती देख अपनी किशोरावस्था याद आती है जब हम लोगों ने खुलेआम सिगरेट पीना शुरू किया था. सिंहावलोकन से लगता है कि हम इतने प्रतिबंधों और वर्जनाओं के साथ पलते बढते हैं कि कोई भी वर्जना तोडना विद्रोह लगता है. हमने इन बच्चों को वैसे ही समझने की कोशिस नहीं किया जैसे हमारे अभिभावक हमारे साथ करते थे. लड़के-लड़कियों का मिलना-जुलना विकास का सकारात्मक लक्षण है. और जब एवं जहाँ अलगाव-दुराव ज्यादा था/होता है वहां बच्चों में सेक्स-ऐडवेंचर ज्यादा होते थे/हैं अभी के मेल-जोल के जनतांत्रिक माहौल की तुलना में. प्रतिबन्ध उल्लंघन को खत्म करने का एकमात्र तरीका है प्रतिबन्ध का विशवास और मैत्री-भाव से परतिस्थापना.
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