Sunday, September 30, 2012

मनुष्य सामाजिक प्राणी है

मनुष्य सामाजिक प्राणी  है
ईश मिश्र 

कक्षा में धमाचौकड़ी मची है
अध्यापक बता रहा है कि
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
बाहर निकल भागते है
 किसी मरीचिका के पीछे
आगे दिखता बंद राजद्वार 
"आम रास्ता नहीं" का इश्तहार

बंद राजद्वारों  के पीछे के राजपथ 
आरक्षित होते हैं चंद असुरक्षित अभिजनों के लिये 
और इनके संगमरमरी धरातल 
नाम-ओ-निशाँ भी नहीं छोड़ते किसी हलचल के
इसीलिये मुझेभाते हैं टेढ़े-मेढे कच्चे रास्ते
गिरते-फिसलते चलते जाते हैं जिनपर
ताकत से मिट्टी की गंध की
यादें रह जाती हैं और हिचकी आती है
लगता है किसी के बही में मेरा भी नाम दर्ज है
काश पता चल गया होता 
'टूलेट' की तख्ती धुंधलाने के पहले

रूसो की सास्त्र में अरूचि थी
मुझे कक्षा में ऊब होती है
मैं एअस्तू नहीं  समझ सकता.
[२७.०९.२०१२/शाम ६.०५ बजे]

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