Sunday, September 16, 2012

आरती को सलाम

दो दिन पहले इलाहाबाद में एक लडकी ने दो शोहदों को, जो महीनों से उसे छेड़ रहे थे,  खुले आम, बीच बाज़ार दौइदाया और उनकी मोटरसाइकिल को आग लगा दी. यह कविता उसके सम्मान में है.

आरती को सलाम 
ईश मिश्र
वीरांगना, आरती! तुमको सलाम
देती रहो साहसी कृत्यों को अंजाम
करो हथौड़े का  प्रहार बार बार लगातार
हो जाए मर्दवाद बेचारा सा लाचार
तोड़ डालो ऐसी मुर्तिया उस लड़की की
बनाया जिसे है मर्दवाद ने छुई-मुई सी
बनाओ कलम को हथियार और औज़ार
तोड़ दो श्रृंगार की डिबिया का कारोबार
है जो गुलामी का एक मोहक हथियार
करो आवाज़ इतनी बुलंद
कि निकलें उनसे आजादी के छंद
नहीं जलाई है तुमने सिर्फ मोटर साइकल
दी है नारी को लड़नेने की एक नयी अकल
कर दो चौराहे पर अब खुला ऐलान
आने वाला है नारी-मुक्ति का तूफ़ान
बता दो इन संस्कृति के रक्षकों को
मानवता के आतातायी भक्षकों को
नहीं करेगी यह लडकी अब चूल्हा-चौका
मुद्दतों बाद मिला है खुदी  साबित करने का मौका
यह लडकी अब किसी की टहल नहीं बजाएगी
इन्किलाब करेगी

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