वर्ग तो सभ्यता के इतिहास के सभी समाजों में रहे हैं, वर्गों और वर्ग-संघर्ष के चरित्र बदलते रहे हैं. भारत में वर्ण-व्यवस्था ही वर्ग व्यवस्था भी रही है. शासक वर्ण ही शासक वर्ग भी रहे हैं. उत्पादक वर्ग श्रम के साधनों से वंचित रहे, इसी लिए भारतीय सामंतवाद वर्णाश्रम-सामंत्वाद रहा है. भारतीय पूंजीवाद अर्ध-सामंती, अर्ध-औपनिवेशिक पूनीवाद है जिसमे देशी पूंजी साम्राज्यवादी पूंजी की चेरी है. देखते नही ४० करोड़ की बेरोजगारी पैदा करने और भारतीय किसानो और उपभोक्ताओं को विदेशी पूंजी के रहमोकरम पर छोड़ने वाले फुटकर क्षेत्र में विदेशी निवेश की सरकार की गुलामी की नीति का यहाँ के पूंजीपतियों ने खुल कर उछालते हुए स्वागत किया! इस पर विस्तार से लेख की योजना है, हो जाएगा तो पोस्ट करूंगा
Tuesday, September 18, 2012
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