Sunday, September 9, 2012

इश्क का अंदाज़


इश्क का अंदाज़
ईश मिश्र 
इश्क का अपना रहा कुछ ऐसा अनोखा अंदाज़
हर मुहब्बत ने किया दानिशमंदी का आगाज़
तय करता रहा ज़िंदगी की सफर के ऊबड़-खाबड़ रास्ते
लिए हाथों में हाथ सारी दुनिया से मुहब्बत के वास्ते
दोस्ती इश्क में कब बदली मालुम न हुआ
महबूब ने जब तक आगाह नहीं किया
आशिक और माशूक भी होते हैं हमसफ़र 
रहती हैं मधुर यादें खत्म होता जब सफर
होते हैं गीले-शिकवे उन लोगों की मुहब्बत में
खोट होता है भरी जिनकी आपसी सोहबत में
होते हैं रिश्ते जब ईमानदारी से पारदर्शी 
इश्क-ओ-गम के किस्से बन जाते हैं मर्मस्पर्शी

आती है इश्क से फूल से चेहरे पर रौनक
दूर से गुजर जाती है झंझावात की खनक
हो रिश्तों में अगर जनतांत्रिक पारस्परिकता
कोई भी कभी भी किसी की निगाह में नहीं गिरता



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