मानवता और नैतिकता
ईश मिश्र
ईश मिश्र
अखंड थी थी मानवता असभ्य आदिम समाज में
हुई खंडित निजी संपत्ति से सभ्यता के आगाज से
हुआ उत्पादन के साधनों पर जब से निजी स्वामित्व
टुकड़े-टुकड़े हो गया मानवता का अस्तित्व
इंसानों में आपस में कोई झगड़ा न था
निजी संपत्ति का जब तक कोई रगडा न था
न कोई राजा था न कोई खैय्याम
आपसी मेल ही था जीवन का अभिन्न आयाम
ताकत से कुछ ने किया जब औरों को पराधीन
गुलामी के निजाम में रहता नहीं कोई भी स्वाधीन
बढता रहा जैसे जैसे वर्चस्व का ताम-झाम
गढ़ते
रहे शासक नैतिकता के नए नए आयाम
नैतिकता और मर्यादा शासक-वर्ग के चोचले हैं
खाली पीपे की तरह अंदर से खोखले हैं
करना है अगर फिर से अखंड मानवता का आगाज़
बनाना पडेगा हमको फिर से एक वर्गविहीन समाज.
गजब सर
ReplyDeleteशुक्रिया
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