Vinod Shankar Singh Good evening sir and gratitude for your rare appearance. Civility introduces duality, one wants to look what one is not -- the perennial contradiction of the essence and appearance. Most visible and advertently overlooked implications of this are family and ISHQ. Parents and children live under the same roof for 20-30 years or so without ever really interacting with each other. They only communicate within the framework of established hierarchy and norms. Lovers till they are married continuously pretend to impress each other. Their behavior in presence of is different from their normal behavior among their friends. सर, रिश्तों की जनतांत्रिक पारस्परिकता सुख का मूल मन्त्र है. और प्यार की ही तरह सुख भी तलाशने से नहीं मिलता, ज़िंदगी के ढंग के सफर में खुद-ब-खुद मिलता रहता है. मैं कई मित्रों को जानता हूँ जो पहले तो झोला धोने को उद्यत रहते थे (आलंकारिक भाषा में), लेकिन शादी होते ही पति-परमेश्वर बन गए. जाहिर है ऐसी शादियों को टूटना ही होता है और टूटती ही हैं, क्योंकि जिसे एक बार समानता और स्वतन्त्रता के सुख का स्वाद मिल चूका हो, उसे परतंत्रता और असमानता नहीं पचती. वीपी सर की पोस्ट बमें 'अजीज' साहब की नज़्म मध्ययुगीन इश्क परिभाषित करती है और मेरी तुकबंदी मौजूदा दौर के इश्क का बयान है.
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