न हूँ मैं करिश्मा, न कोई
सितम 
ईश मिश्र 
करने को हमारी इंसानी
सादगी को  तरह तरह से  बदनाम
मुद्दत से होती आ रही
हैं साजिशें, कभी छिपकर कभी
खुले आम
कोई कहे करिश्मा तो
कोई कहे सितम
इंसान से कुछ अलग
दिखें जिससे हम
पढ़ने-लिखने से हमें अब
तक  पुरुषों के समाज ने रोका था
सहते रहे सितम, न पहले कभी टोंका था
लेकिन पढ़-लिख कर अब हम हो गयी है सजग
रचेंगी हम अब अपना एक नया शास्त्र अलग
न अब चलेगा कोई
करिश्मा न होगा कोई सितम
बराबर साझेदारी का एक  नया समाज
बनाएंगे हम
नहीं हैं हम कोई करिश्मा या कोई सितम 
सीधे-सादे अक्लमंद इंसान हैं हम
सीधे-सादे अक्लमंद इंसान हैं हम
(यह तुकबंदी हेरम्ब जी को समर्पित)
 

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