Saturday, September 29, 2012

न हूँ मैं करिश्मा, न कोई सितम


न हूँ मैं करिश्मा, न कोई सितम
ईश मिश्र

करने को हमारी इंसानी सादगी को  तरह तरह से  बदनाम
मुद्दत से होती आ रही हैं साजिशें, कभी छिपकर कभी खुले आम
कोई कहे करिश्मा तो कोई कहे सितम
इंसान से कुछ अलग दिखें जिससे हम
पढ़ने-लिखने से हमें अब तक  पुरुषों के समाज ने रोका था
सहते रहे सितम, न पहले कभी टोंका था
लेकिन पढ़-लिख कर अब हम हो गयी है सजग
रचेंगी हम अब अपना एक नया शास्त्र अलग
न अब चलेगा कोई करिश्मा न होगा कोई सितम
बराबर साझेदारी का एक  नया समाज बनाएंगे हम
नहीं हैं हम कोई करिश्मा या कोई सितम
सीधे-सादे अक्लमंद इंसान हैं हम
(यह तुकबंदी हेरम्ब जी को समर्पित)

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