चंचल भाई, मुख्य और गौड़ धारा उसी तरह कल्पित अवधारणायें हैं जैसे एक समरस हिंदू या मुस्लिम समुदाय. साम्प्रदायिकता कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है और न ही कोई साश्वत विचार जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम तक चली आयी हो. साप्रदायिकता विचार नहीं विचारधारा है जो रोजमर्रा के आचार-विचार से निर्मित और पुनर्निर्मित होती है. यह विचारधारा लोगों की अटूट धार्मिक आस्थाओं का इस्तेमाल करके एक धर्मोन्मादी मिथ्या चेतना के जरिये असंबद्ध लोगों में एक कृतिम संबद्धता का भाव भरती है. कुछ चालाक लोग धार्मिक भावनाओं का इसेमाल करके लोगोबं को लड़ा-भिडाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं. सगे भाई-बहन तो एक जैसे होते नहीं. मैं अपने भाई-बहनों में शरीर और सोच दोनों में इकलौता नमूना हूँ. सब सत्यनारायण की कथा सुनते हैं बाकी ही भक्तों की तरह बिना जाने कि आखिर ऊ कथावा है क्या जिसके सुनने या न सुनने से जो भी होता है. चंचल भाई क्षमा कीजियेगा, मुस्लिम युवकों को मुख्यधारा से जोड़ने के आपके सरोकार से निहितार्थ निकलता है कि कोई हिन्दू धारा है जो मुख्य-धारा है. हम जैसे नास्तिकों की क्या स्थिति है? चंचल भाई जब सगे भाई-बहन एक जैसे नहीं होते तो लाखों मुसलामानों या करोणों हिन्दुओं का कोई एकरस/समरस समुदाय कैसे हो सकता है? इन काल्पनिक समुदायों के स्व-घोषित प्रवक्ताओं ने लाखों करोणों लोग क्या सोचते हैं उसका खुलासा करने का अधिकार अर्जित करने का कोई जनमत संग्रह करते हैं? या तो इस अमूर्त मुख्यधारा को परिभाषित कीजिये अन्यथा इससे साम्प्रदायिक सन्देश जा रहा है. सादर.
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