Wednesday, December 28, 2016

मोदी विमर्श 54 (नोटबंदी 11)

मितरों,देशद्गरोही मुझ फकीर पर गरीब के साथ गद्दारी का आरोप लगा रहे हैं. मितरों, ऐसे लोगों को पाकिस्तान भेजना चाहिए कि नहीं? मितरों मैं गरीब हूं कि नहीं? मितरों मैंने बचपन में चाय बेचा कि नहीं? किसके लिए गरीबों के लिए. भाइयों और बहनों मैंने पत्नी का त्याग कर ब्रह्मचर्य लेकर राष्ट्र सेवा के लिए हिदू-राष्ट्र का प्रचारक बना कि नहीं? किसके लिए, और किसके? गरीबों के. मितरों मैं गरीबी जानता हूं मैं भूखो रहा हूं, इसीलिए लखटकिया सूड में अडानी की जहाज से चलता हूं और उसे 7000 करोड़ का उपहार देता हूं. किसके लिए? गरीबों के लिए जिससे हर गरीब को प्रेरणा मिले की वह भी चाहे तो अडानी की जहाज पर चल सकता है. मितरों अंबानी-अडानी जैसे गरीब कॉरपोटों के 12-14 लाख बुरा कर्ज बैंकों को न लौटा पाने से बैंकों में नगदी की कमी हो गयी थी कि नहीं? हमारी गौरवशाली धनपशुकि व्यवस्था जनता के पैसे पर बैंकों के नियंत्रण और कॉरपोटी विकास पर टिकी है कि नहीं? बैंक में नकदी नहीं रहेगी तो वह बुरा कर्ज नहीं दे पाएगी और क़ारपोरेट के लिए राष्ट्र का विकास नहीं कर पाएगा. राष्ट्र के विकास से गरीब की गरीबी कम होगी कि नहीं? मितरों मैं गरीब के लिए जीता मरता हूं कि नहीं? मितरों, मैं बेईमानों के जाल की गहनता नहीं जानता था. नहीं जानता था कि 70 सालों के भ्रष्टाचार कितना गहरा है कि वहां पहुंचने तक 50 दिन क्या 50 हफ्ते भी कम पड़ेंगे, लेकिन मितरों मैं आपका सेवक झुकने वाला नहीं. मैं भ्रष्टाचार से लड़ रहा हूं और भ्रष्टाचारियों के समर्थक जिनमें कई खूंखार नक्सल भी हैं, मितरों मैं भ्रष्टाचार को मारना चाहता हू और गरीबों के दुश्मन मुझे. मितरों यदि मैं गरीबों का मशीहा न होता तो इतने गरीब जान देकर, भूखे रह कर लाइनों में लगकर वगैरह वगैरह तरह सो देश को लिए बलिदान क्यों देते. मितरों मेरे पास आवाम के सवासौ करोड़ का सुरक्षा कवच है यसपीजी तो उसका अंश मात्र है. मितरों मैं भगवान राम का भक्त हूं जो दिमाग का इस्तेमाल किए बाप की बात से जंगल चले गए. जान दजाए पर वचन न जाए. एक और मौका दीजिए, बस 50 हफ्ते का मैं बंदूकों के सुरक्षा कवच से निकल कर भगवान राम की तरह खुद बनवास ले लूंगा. तो मितरों अब गरीबी पर प्रवचन का मसाला खत्म हो गया. मितरों नए मसाले के साथ जल्दी मन की बात बताऊंगा. भारत माता की जय.

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