Saturday, December 24, 2016

स्वयंभू

ऐसा ही फरेबी एक शख्स था स्वयंभू भगवान
कहते किसी द्वापर युग में
आज भी मानते भगवान उसको इस कलियुग में
था शेर सा खूंखार लोमड़ी सा चालाक
वाक्पटुता से कर देता था लोगों को अवाक
था उसके पास एक अद्वितीय क्षेपक अस्त्र
दूर से ही कर सकता था दुश्मन को त्रस्त
नाम रखा था उसका नरसंहारी सुदर्शन चक्र

पला-बढ़ा वह एक पशुपालक परिवार में
बचपन में करता था गाय बृंदाबन में
चतुराई से खेल खेल-चुटकुलों में
सरमौर बन जाता साथी चरवाहों में
चुराता था दही लगाता था औरों का नाम
कहावत है बद अच्छा बुरा है बदनाम
जैसे जैसे बड़ा होता गया
लड़कियों का चहेता बनता गया
करता था उनके कपड़े चुराने की क्रीड़ा
रचता था उनके साथ रासलीला
सहता था परनारी गमन के आरोप की पीड़ा
अदालत ने शिकायतियों पर लगाया प्रत्यारोप
घोषित किया उसे सब आरोपों से निर्दोष
जवानी तक पूरे गांव का हो गया वह बेत़ाज बादशाह
ख़ाहिश मगर थी उसकी बनने की चक्रवर्ती सम्राट

इसके लिए उसने दूरगामी योजना बनाया
एक छोटे से रजवाड़े को कर्मभूमि बनाया
पहुचते दिखाया कुछ चमत्कारी कारनामें
सर्वज्ञ बन बैठ गया परदेश के चिलमन में
चली फिर उसने एक अचूक चाल
बिछाया राजकुल में फूट का जाल
कराने गया बनकर बिचौलिया दावेदारों में समझौता
दिलाया दोनों से रणभूमि में मिलने का आपसी न्योता
बनाया अपना भक्त था जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
साबित किया था मछली की आंख भेदकर
जंगखोरी जमकर किया गुणगान
युद्ध कर्म को बताया दैविक विधान
कहा खून-खराबे में फायदा ही फायदा है
जीतने पर राज हारने पर स्वर्ग बदा है
करने लगा धनुर्धर युद्ध के प्रलयंकारी परिणामों की बात
दिखाने लगा सगे-संबंधियों से मोह-माया ओ नैतिक जज्बात
देखा स्वघोषित प्रभु ने जब धनुर्धर की भावना युद्ध-विरक्ति की
दिखलाया अपना विराट रूप और माया जादुई शक्ति की
उंगलिओं पर घूमने लगा महान सुदर्शन चक्र
देखा धनुर्धर को करके आंखें थोड़ा वक्र
कहा मैं ही हूं भगवान श्रृष्टि रचने वाला
दुनिया को वर्णाश्रम की सौगात देने वाला
हुआ दोनों पक्षों में खून खराबा घमासान
हुंकार-ललकारों से गूंजा साराआसमान
गिरने लगे धरती पर बड़े-बड़े महारथी ऐसे
आंधी में पेड़ों से से फल गिरते हों जैसे
खुशी से नाचने लगे आसमान में चील्ह-बाज
मानव-मांस है जिनके भोजनों में सरताज
चंद दिनों में धरती बन गई सुनसान श्मसान
हो गई कोख उसकी जैसे एक टापू वीरान

प्रलय के बाद शांत था धरती-आसमान
पूरा किया उसने चक्रवर्ती का अरमान
बनाया राजधानी समृद्ध द्वारका नगरी में
करके विवाह एक कुलीन राजकुमारी से
स्थापित किया उसने विशाल यदुबंशी साम्राज्य
लोगों की भक्तिभाव से करता रहा एकक्षत्र राज्य
लेकिन है प्रकृति का एक ऐतिहासिक नियम
टूटता है लोगों का कभी-न-कभी भक्ति से भ्रम
करता रहा वह दिमागों पर तब तलक राज
खुला नहीं जब तक उसकी खुदाई का राज़
सिखाया था जो औरों को कुनबाई रक्तपात
यदुवंशियों ने भी कर लिया आत्मसात
कहावत है मियां के सिर मियां का लात
छिड़ गया भयानक गृहयुद्ध द्वारिका में
छिप गए खुदा घनी राज वाटिका में
जैसे ही हटा खुदा से किलेबंदी का घेरा
बेनकाब हो गया उसकी खुदाई का चेहरा
एक बहेलिए ने उसे मार गिराया
चक्रसुदर्शन किसी काम न आया
(अधूरी. क्या भाई बोधिसत्व जी आपने खुदाई पर ऐसा उकसाया कि डेडलाइन की नैतिकता भूल कर, कलम आवारा हो गया, सठियाए लोगों का कलम भी उन्ही जैसी आवारगी करता है.)
(ईमि: 24.12.2016)

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