Monday, December 19, 2016

नोटबंदी का घटाटोप

उस वक्त की बात है जब लिखी गयी थी यह कविता
चहकती थी हर शाख और महकती थी हर दिशा
मौसम में थी जीने-खाने की सहजता
सीमित कमाई से भी था घरबार चलता
बिछाकर सरकार ने नोटबंदी का भयानक जाल
लूट लिया मौसम से खून-पशीने बना जान-माल
बंद कर दिया है दिशाओं ने महकना
और शाखों ने चहकना
छा गया है दिशाओं पर नोटबंदी का घटाटोप
सरकार लगा रही है नंगे-भीखों पर कालाबाजारी के आरोप
शाखाएं ऊंघ रही हैं एटीम की लंबी कतारों में
भूल गए हैं खग-मृग झूमना, फुदकना और चहकना
लेकिन ये दिशाएं महकना भूली नहीं हैं
शाखाओं के तेवर में चुप रहना नहीं है
फिर से मंहकेंगी दिशाएं और चहकेंगी शाखाएं
नोटबंदी के फरेब की टूटेंगी मृगमरीचिकाएं
(यों ही)
(ईमि: 20.12.2016)

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