बोधसत्व की एक पोस्ट पर मेरे एक कमेंट से नाराज होकर एक भक्त ने मेरे घर वालों पर मेरे दिमाग का इलाज न कराने की तोहमत लगाया, उस पर अपना कमेंट शेयर कर रहा हूं.
हमारे परिवार वालों ने यज्ञोपवीत पहनाकर दिमाग को ब्राह्मण-ज्ञान से सिंचित करने की कोशिस की थी लेकिन 13-14 साल की उम्र में 3 धागों को तोड़कर मेरे दिमाग ने मुझे बाभन से इंसान बनने का रास्ता बताया. रास्ता वैसे आसान नहीं है, सोचने का दुस्साहस और अपने विवेक के इस्तेमाल की हिम्मत जुटानी पड़ती है. शाखा का प्रशिक्षण दिमाग कुंद कर देता है. किन हिंदुओं पर किसके अत्याचार की बात कर रहे हैं? कौन है हिंदू, ब्राह्मण या शूद्र? अगर शूद्र भी हिंदू है और ब्राह्मण भी तब तो हिंदू ही हिंदुओं पर हजारों साल अमानवीय अत्याचार करते रहे हैं, उन्हें अछूत और अंत्यज बनाकर. जहां तक मेरे जेयनयू के होने के नाते मेरी निष्पक्षता का सवाल है, तो Sudarshan Pandey जी, निष्पक्षता एक ढोंग है. मैं बिल्कुल पक्षधर हूं, परंपरा और पोंगापंथी के विरुद्ध विवेक और तर्क का; सांप्रदायिक नफरत के विरुद्ध जनवादी सामाजिक चेतना का; कॉरपोरेटी लूट के विरुद्ध उत्पीड़ितों के संघर्ष का. आप ब्राह्मणवादी कुतर्कों से अपनी निष्पक्षता साबित कर रहे हैं. दोगलापन फासीवादी सोच का अभिन्न अंग है. जेयनयू का भूत भक्तों के सिर से अभी नहीं उतरा? ऐडमिशन मिल गया होता तो आप भी बाभन से इंसान बन गए होते, हिदुओं पर अत्याचार का प्रलाप न कर रहे होते.
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