एक था अहंकारी राजा
डाला आवाम की संपत्ति पर भयंकर डाका
ऐश करते रहे सब हरामखोर थे जो उसके आका
मच गई प्रजा में त्राहि त्राहि घरों में पड़ने लगा फाका
मरने लगा आवाम हुआ न काला धन को बाल भी बांका
देश भक्ति के नाम पर शुरू हुआ मेहनतकशों का हांका
पेट की आग ने मुर्दों जान भरना शुरू किया
भक्तिभाव को बगावत में बदलना शुरू किया
हथियारबंद सैनिक भी परिजनों के दुख से दुखी हुआ
हथियारबंद मशीनों में चिंतनशक्ति का संचार हुआ
देख हलचल मशीनों में अंहकारी राजा सनक गया
विक्षिप्त हो मुल्क के आवाम पर पागल सा भड़क गया
भूखे-नंगों का बगावती जज्बात हो गया भक्ति भाव पर हावी
छीन लिया दरवान से राजा के गुप्तकोष की चावी
लूट लिया प्रजा ने महल से पीढ़ियों से लुटा अपना धन
राजा का सिर धरती पर गिरा मिट्टी में मिला अहंकारी मन
(यों ही)
(ईमि: 07.12.2016)
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