कल प्रधानमंत्री का मुरादाबाद में भाषण
की भाषा किसी राजनेता की नहीं सड़क छाप लंपट की लग रही थी और यदि तालियां और हर
घिसी-पिटी भंड़ैती पर 'मोदी मोदी' के नारे प्रायोजित नहीं थे तो देश भविष्य खतरे में है.
सार्वजनिक मंच से वे अनैतिकता का आह्वान कर रहे थे कि वे अमीरों के पैसे मार लें
ऐसे जैसे कि अमीर-कालाबाजारी गरीबों के पास पैसे लेकर गिड़गिड़ा रहे हों? उ.प्र. का चुनाव
है, 100 दिन
में हर हिंदुस्तानी के खाते में 15 लाख विदेशी कालाधन न पहुंचाने पर फांसी पर चढ़ जाने की कसम खाने
वाले भंडैत ने लोगों की खून-पसीने की कमाई हड़प लिया. 98% नगदी में
व्यापार की बाजार से बिना वैकल्पिक तैयारी के बड़ी नोटों की 86% नगदी बाजार से
गायब कर आम जन-जीवन तथा व्यापार तबाह कर दिया. अब 50 दिन में हालात ठीक न करने पर जिंदा
जलाने का आह्वान कर रहा है. 'फांसी लगा दो'; 'गोली मार दो'; 'जिंदा जला दो' जैसी भाषा किसी राजनेता की नहीं, एक अपराधी की भाषा लगती है. तुगलकी
शैली में देश पर थोपी गई नोटबंदी की अनावश्यक विपदा से त्रस्त लोग यदि इसे बरदान
मान इस इतिहास-विमुख चालबाज की नौटंकी पर मुग्ध हो रहे हैं तो हमारी सामाजिक चेतना
और बौद्धिकता का स्तर सोचनीय है और भविष्य अंधकार मय. जागो देशवासियों, वर्तमान बरबाद
हुआ तो आने वाली पीढ़ियां और इतिहास हमें माफ नहीं करेगा. एक अहंकारी तानाशाह की
तुगलक़ी फरमान ने अर्थव्यवस्था को तबाही के कगार पर ढकेल दिया है. सभी छोटे उद्योग
और उद्यम तथा स्वरोजगार से रोटी कमाने वाले लोगें ही नहीं नौकरीपेशा मध्यवर्ग भी
त्राहि-त्राहि कर रहा है. फिर भी यदि लोग विद्रोह में सड़कों पर निकलने की बजाय
भक्तिभाव से कीर्तन कर रहे हैं, तो इस समाज को विनाशकारी अधोपतन से कोई नहीं उबार सकता.
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