नोटबंदी का फैसला तुगलकी पागलपन में नहीं, सोची-समझी साज़िश के तहत लिया गया है जो कृषि और फुटकर व्यापार और जनजीवन को तबाह कर शिक्षा के साश रिटेल, कृषि और सेवा क्षेत्र गैट्स को समर्पित करने की विश्वबैंक के साथ करारनामे को लागू करने की , चाल है. याद कीजिए यूरोप में एकाधिकार पूंजीवाद की शुरुआत में बड़े खिलाड़ियों ने किस तरह छोटे उद्यमियों को मिलाया/बर्बाद किया. अब भूमंडलीय पूंजी को जिस स्तर पर विस्तार चाहिए उसका पथ सरकार ही प्रशस्त कर सकती है.
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