जनता में मचे हाहाकार के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या नोटबंदी का फैसला सोच-समझ कर लिया गया है या किसी तुगलक़ी सनक में? नहीं महामहिम! यह भारतीय अर्थव्यवस्था को पंगु बनाकर, कैशलेस के शगूफे से व्यापार और सेवा क्षेत्र को डिजिटल वितरण वाली साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी के हवाले कर, बेरोजगारों की फौज में करोड़ों का इजाफा करना है. नोटबंदी से लोगों की जिंदगी में आया तूफान मोदी जी ने कहा कि 50 दिन में थम जाएगा, 33 दिन हो गए. मोदी जी ने कहा था कि 100 दिन में विदेशों से काला धन ले आकर हर हिंदुस्तानी के खाते में 15 लाख जमा कराएंगे और अच्छे दिन लाएंगे. बुतपरस्त-मुर्दापरस्तों के इस मुल्क के पढ़े-लिखों ने भक्तिभाव से, अमितशाह कि भाषा में जुमलों को सच मान लिया. लगभग एक हजार दिन हो गए, किसी के खाते में कोई कालाधन नहीं पहुंचा, तो मोदी ने कालाधन का नया शगूफा छोड़कर लोगों की खून-पसीने की कमाई जबरन जब्त कर कंगाल बना दिया. इसके दूरगामी दुष्परिणाम हमें ही नहीं हमारी आने वाली पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा. मुझे तो भविष्य 1930 की मंदी और 1942 के बंगाल में अकाल की स्थिति की तरफ बढ़ता दिख रहा है. वैसे इतिहास खुद को दुहराता नहीं, प्रतिध्वनित होता है. प्रतिरोध की ताकतें कमजोर और बंटी हुई हैं.
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