Saturday, December 3, 2016

इश्क में भी इंक़िलाब

2012 की एक पोस्ट पर इलाहाबाद के मेरे सीनियर वीपी संह जी ने कमेंट किया कि इश्क में भी इंक़िलाब, वह पोस्ट दिखा गई और कलम आवारा हो गया.
Virendra Pratap Singh
सही साबाशी दी है इश्क में इंकिलाब की
प्रेम ही है गाढ़ा-माटी इंक़िलाब के बुनियाद की
इंकिलाब नहीं है संसद का चुनाव
इंकिलाब है दुनिया बदलने का भाव
बदलाव नहीं महज मसला-ए-निज़ाम में
बल्कि ज़िंदगी के हर मुमकिन मुकाम में
आता है जब समाज में इंकिलाब
बदल जाता है आशिकी का मिज़ाज
होता नहीं कोई हुस्न के जलवे का पिजड़ा
न ही किसी धनुर्धर की तीरअंदाजी का जलवा
होती है बुनियाद विचारों की साझेधारी
हमराह-हममंजिल होती है आशिक जोड़ी
(ईमि:04.12.2016)

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