मोतियाबिंद का नाटक कर रहा है. यह तुगलकी सनक नहीं है बल्कि नोटबंदी विश्वबैंक के आदेश से एक सोची-समझी नीति है जिसके कई उद्देश्य हैं. 1. कश्मीर, नज़ीब की गायबी, सामरिक गुलामी का अमेरिका से सैनिक समझौता, अपने कॉरपोरेट आकाओं द्वारा हड़पे 12 करोड़ का 'बुरा कर्ज' जिनके नाम सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बावजूद, 'गोपनीयता' के तहत सरकार नहीं उजागर कर रही है, वर्णाश्रमी गुरुकुल की पुनर्स्थापना की शिक्षा नीति का मसविदा आदि से ध्यान हटाकर लोगों को बैंकों की कतारों में खड़ा कर देना. 2. विदोशों से काला धन ले आकर हर किसी को 15 लाख देने के वायदे की याद दिलाने वालों का मुंह बंद करना. गौर तलब है कि काले अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो काले धन की 80% विदेशों में है जो कि भारत के कुल विदेशी कर्ज का 13 गुना है. यानि यदि यह आ जाए तो देश कर्ज से उऋण तो हो ही जाएगा शिक्षा-स्वास्थ्य, यातायात जैसे तमाम जनकल्याण के काम किए जा सकते हैं. एक अर्थशास्त्री के अनुसार, यदि यह धन देश वापस आ जाए तो हर किसी को तो नहीं लेकिन आर्थिक सीढ़ी के निचले 45% परिवारों को 10-10 लाख मिल सकता है. लेकिन काला धन लाने की तो छोड़िए, सरकार के पास जो 600 से अधिक नाम है, सर्वोच्च न्यायालय की डांट के वावजूद 'गोपनीयता' के नाम पर उन्हें भी नहीं उजागर कर रही है. 3. इनके पूर्व सांसद विजय माल्या और मौजूदा उप-आकाओं अडानी-अंबानी (मुख्य आका तो वालमार्ट है) समेत तमाम धनपशुओं द्वारा लगभग 12 लाख करोड़ हड़प जाने के कारण बैंकों में नगदी संकट पैदा हो गया. वित्तीय पूंजीवाद का नियम है, जनता का पैसा, बैंक का नियंत्रण और धनपशु(पूंजापति) द्वारा मुनाफे के निए निवेश. बिल्कुल अमेरिका के 2008 बैंकिंग के ढर्रे पर बैंकों में नगदी संकट हो गया. अमेरिकी सरकार ने, सरकारी यानि जनता के पैसे से अथाह पैसा देकर संकट से निजात पाया, अपराधियों को सजा देने की बजाय जनता के पैसे से उनकी ऐयाशी बेरोक-टोक सुनिश्चित कर दी. मोदी सरकार ने जनता का पैसा हड़प कर. 4. मोदी जी नैरोबी जाकर गैट्स के उन प्राविधानों पर हसताक्षर कर आए हैं जो देश की अर्थ और शिक्षा व्यवस्था को भमंडलीय पूंजी के हाथों गिरवी रखने के उपाय हैं, जिनमें शिक्षा, रिटेल और खेती की प्रमुखता है. नोटबंदी की क्षतिपूर्ति तक मध्य वर्ग मंहगी कैशलेसनेस से डिजिटल बैंकों का मरीद बन चुकेगा और रिटेल तबाह हो जाएगा, बैक डोर से रिटेल में य़फडी आई. रिटेल 42 करोड़ लोगों को रोजगार देता है यफडीआई के बाद यह 4.2 करोड़ हो जाएगा, 37.8 करोड़ लोग अदृश्य तरीके से अदृश्य हो जाएंगे. 4. किसानों की तबाही कृषि को विश्वबैंक के हवाले करने का सरल रास्ता है. बाकी बाद में.
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