Thursday, December 29, 2016

देशद्रोही जनता

जनता देशद्रोही हो गयी है
नहीं दे रही है सबूत देशभक्ति का
सहकर नोटबंदी की घातक मार
जनता खो चुकी है विश्वास सरकार का
ब्रेख्ट ने लिखा था हिटलर की जर्मनी में
सरकार द्वारा नई जनता चुनने की बात
यह सरकार चुनेगी नई जनता
जो हाफ नहीं अब फुलपैंट पहनकर आएगी
नोटबंदी के विरोधियों का खोज खोज पता लगाएगी
और देशद्रोहियों को एक एक कर
देश भक्ति का पाठ पढ़ाएगी
नमस्ते सदा वत्सले का गीत गवाएगी
जो करेगा देशभक्ति से इंकार
पाकिस्तान भेज देगी यह सरकार
सरकार आसमान से उतरी थी जब
नवाब शरीफ के घर
लेने उनकी मां का आशीस
नवाया था भक्ति भाव से शीष
शरीफ ने पहनाया थो मोदी को जब फूलो का हार
दोनों ने महसूसा
अपने अपने देशद्रोहियों को निपटाने की दरकार
किया दोनों ने देशद्रोहियो की अदलाबदली का करार
हिंदुस्तानी देशद्रोही डूबेगा अरब सागर में
पाकिस्तानी देशद्रोही हिंद महासागर में
मिलेंगे दोनों वहां
हिंद महासागर मिलता है अरब सागर जहां
दोनों मिलकर साझा रणनीति बनाएंगे
जनता चुनने वाली सरकारों को
समुद्र में डुबाएंगे
ख़ाक में मिलाएंगे सरकार द्वारा जनता चुनने के रिवाज़
( यूं ही, सुबह सुबह कलम की आवारगी)
(ईमि: 29.12.2016)

मोदी विमर्श 55 (नोटबंदी 12)

मोतियाबिंद का नाटक कर रहा है. यह तुगलकी सनक नहीं है बल्कि नोटबंदी विश्वबैंक के आदेश से एक सोची-समझी नीति है जिसके कई उद्देश्य हैं. 1. कश्मीर, नज़ीब की गायबी, सामरिक गुलामी का अमेरिका से सैनिक समझौता, अपने कॉरपोरेट आकाओं द्वारा हड़पे 12 करोड़ का 'बुरा कर्ज' जिनके नाम सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बावजूद, 'गोपनीयता' के तहत सरकार नहीं उजागर कर रही है, वर्णाश्रमी गुरुकुल की पुनर्स्थापना की शिक्षा नीति का मसविदा आदि से ध्यान हटाकर लोगों को बैंकों की कतारों में खड़ा कर देना. 2. विदोशों से काला धन ले आकर हर किसी को 15 लाख देने के वायदे की याद दिलाने वालों का मुंह बंद करना. गौर तलब है कि काले अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो काले धन की 80% विदेशों में है जो कि भारत के कुल विदेशी कर्ज का 13 गुना है. यानि यदि यह आ जाए तो देश कर्ज से उऋण तो हो ही जाएगा शिक्षा-स्वास्थ्य, यातायात जैसे तमाम जनकल्याण के काम किए जा सकते हैं. एक अर्थशास्त्री के अनुसार, यदि यह धन देश वापस आ जाए तो हर किसी को तो नहीं लेकिन आर्थिक सीढ़ी के निचले 45% परिवारों को 10-10 लाख मिल सकता है. लेकिन काला धन लाने की तो छोड़िए, सरकार के पास जो 600 से अधिक नाम है, सर्वोच्च न्यायालय की डांट के वावजूद 'गोपनीयता' के नाम पर उन्हें भी नहीं उजागर कर रही है. 3. इनके पूर्व सांसद विजय माल्या और मौजूदा उप-आकाओं अडानी-अंबानी (मुख्य आका तो वालमार्ट है) समेत तमाम धनपशुओं द्वारा लगभग 12 लाख करोड़ हड़प जाने के कारण बैंकों में नगदी संकट पैदा हो गया. वित्तीय पूंजीवाद का नियम है, जनता का पैसा, बैंक का नियंत्रण और धनपशु(पूंजापति) द्वारा मुनाफे के निए निवेश. बिल्कुल अमेरिका के 2008 बैंकिंग के ढर्रे पर बैंकों में नगदी संकट हो गया. अमेरिकी सरकार ने, सरकारी यानि जनता के पैसे से अथाह पैसा देकर संकट से निजात पाया, अपराधियों को सजा देने की बजाय जनता के पैसे से उनकी ऐयाशी बेरोक-टोक सुनिश्चित कर दी. मोदी सरकार ने जनता का पैसा हड़प कर. 4. मोदी जी नैरोबी जाकर गैट्स के उन प्राविधानों पर हसताक्षर कर आए हैं जो देश की अर्थ और शिक्षा व्यवस्था को भमंडलीय पूंजी के हाथों गिरवी रखने के उपाय हैं, जिनमें शिक्षा, रिटेल और खेती की प्रमुखता है. नोटबंदी की क्षतिपूर्ति तक मध्य वर्ग मंहगी कैशलेसनेस से डिजिटल बैंकों का मरीद बन चुकेगा और रिटेल तबाह हो जाएगा, बैक डोर से रिटेल में य़फडी आई. रिटेल 42 करोड़ लोगों को रोजगार देता है यफडीआई के बाद यह 4.2 करोड़ हो जाएगा, 37.8 करोड़ लोग अदृश्य तरीके से अदृश्य हो जाएंगे. 4. किसानों की तबाही कृषि को विश्वबैंक के हवाले करने का सरल रास्ता है. बाकी बाद में.

Wednesday, December 28, 2016

मोदी विमर्श 54 (नोटबंदी 11)

मितरों,देशद्गरोही मुझ फकीर पर गरीब के साथ गद्दारी का आरोप लगा रहे हैं. मितरों, ऐसे लोगों को पाकिस्तान भेजना चाहिए कि नहीं? मितरों मैं गरीब हूं कि नहीं? मितरों मैंने बचपन में चाय बेचा कि नहीं? किसके लिए गरीबों के लिए. भाइयों और बहनों मैंने पत्नी का त्याग कर ब्रह्मचर्य लेकर राष्ट्र सेवा के लिए हिदू-राष्ट्र का प्रचारक बना कि नहीं? किसके लिए, और किसके? गरीबों के. मितरों मैं गरीबी जानता हूं मैं भूखो रहा हूं, इसीलिए लखटकिया सूड में अडानी की जहाज से चलता हूं और उसे 7000 करोड़ का उपहार देता हूं. किसके लिए? गरीबों के लिए जिससे हर गरीब को प्रेरणा मिले की वह भी चाहे तो अडानी की जहाज पर चल सकता है. मितरों अंबानी-अडानी जैसे गरीब कॉरपोटों के 12-14 लाख बुरा कर्ज बैंकों को न लौटा पाने से बैंकों में नगदी की कमी हो गयी थी कि नहीं? हमारी गौरवशाली धनपशुकि व्यवस्था जनता के पैसे पर बैंकों के नियंत्रण और कॉरपोटी विकास पर टिकी है कि नहीं? बैंक में नकदी नहीं रहेगी तो वह बुरा कर्ज नहीं दे पाएगी और क़ारपोरेट के लिए राष्ट्र का विकास नहीं कर पाएगा. राष्ट्र के विकास से गरीब की गरीबी कम होगी कि नहीं? मितरों मैं गरीब के लिए जीता मरता हूं कि नहीं? मितरों, मैं बेईमानों के जाल की गहनता नहीं जानता था. नहीं जानता था कि 70 सालों के भ्रष्टाचार कितना गहरा है कि वहां पहुंचने तक 50 दिन क्या 50 हफ्ते भी कम पड़ेंगे, लेकिन मितरों मैं आपका सेवक झुकने वाला नहीं. मैं भ्रष्टाचार से लड़ रहा हूं और भ्रष्टाचारियों के समर्थक जिनमें कई खूंखार नक्सल भी हैं, मितरों मैं भ्रष्टाचार को मारना चाहता हू और गरीबों के दुश्मन मुझे. मितरों यदि मैं गरीबों का मशीहा न होता तो इतने गरीब जान देकर, भूखे रह कर लाइनों में लगकर वगैरह वगैरह तरह सो देश को लिए बलिदान क्यों देते. मितरों मेरे पास आवाम के सवासौ करोड़ का सुरक्षा कवच है यसपीजी तो उसका अंश मात्र है. मितरों मैं भगवान राम का भक्त हूं जो दिमाग का इस्तेमाल किए बाप की बात से जंगल चले गए. जान दजाए पर वचन न जाए. एक और मौका दीजिए, बस 50 हफ्ते का मैं बंदूकों के सुरक्षा कवच से निकल कर भगवान राम की तरह खुद बनवास ले लूंगा. तो मितरों अब गरीबी पर प्रवचन का मसाला खत्म हो गया. मितरों नए मसाले के साथ जल्दी मन की बात बताऊंगा. भारत माता की जय.

मोदी विमर्श 53(नोटबंदी 10)

लोहिया ने 1960 के दशक में कहा था, ज़िंदा क़ौमें 5 साल इंतजार नहीं करतीं. लेकिन हम ज़िंदा क़ौम हैं कि नहीं, कई बार शक होने लगता है. जनता की त्राहि-त्राहि के बीच भक्त पंजीरी खाकर भजन गा रहे हैं। जबान फिसल गई 50 हफ्ते को 50 दिन कह गये वज़ीरे-आज़म. अब कहेंगे, 'भाई और बहनों, इंसान की जुबान कभी-कभी फिसलती है कि नहीं?' "फिसलती है". 'मैं, एक लखटकिया सूट वाला फकीर हूं कि नहीं?' "हूं". 'फकीर भी इंसान होता है कि नहीं?' "होता है". 'मैं इंसान हूं कि नहीं' चुप्पी. 'हूं कि नहीं?' चुप्पी 'बोलिए भाइयों और बहनों, मैं इंसान हूं कि नहीं?, फिर चुप्पी. वज़ीर-ए-आज़म ने सशस्त्र सुरक्षाकवच की तरफ इशारा कर ललकार-हुंकार शैली की बुलंद आवाज में उवाचा, 'भाइयों और बहनों मैं इंसान हूं कि नहीं?' सभी बुलंद आवाज में बोल पड़े, "मैं इंसान हूं". वज़ीर-ए-आज़म वाक्य में कर्ता और क्रिया के फर्स्ट-थर्ड परसन के चक्कर में न पड़, जवाब को हां मान लिया. 'तो भाइयों और बहनों, मैं भी इंसान हूं, इंसान की जुबान फिसलती है, तो भाइयों और बहनों मेरी भी फिसल गई. तो भाइयों और बहनों, मैं बेईमानों को छोड़ूंगा नहीं, एक-एक का संहार करूंगा, 50 दिन की बजाय 50 हफ्ते भले लग जाएं. तो भाइयों और बहनों बेईमान राष्ट्र के दुश्मन हैं कि नहीं?' "हैं". उनका संहार होना चाहिए कि नहीं?' "होना चाहिएि" 'तो भाइयों-बहनों नोटबंदी के चलते बैंकों की कतारों में कालाधन सफेद करने के चक्कर में बहुत से बेईमान मरे कि नहीं?' तब तक भूख और भाषण के प्रकोप से श्रोता बेहोश हो गए थे और लाउडस्पीकर से आवाज आने लगी, "मरे, मरे, मरे". 'अभी तो ये शुरुआत है'.

नोटबंदी 9

Karan Singh Chauhanआत्महत्याओं पर आंसू बहाते हैं, सोहर की तरह नहीं गाते। मैं आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता, आपके लेखों और साहित्यिक मित्रों में आपकी चर्चा से ही जानता हूं. लेकिन अडानी-अंबानियों के 12 लाख करोड़ के बैंको से लूट के कारण बैंकिंग संकट से उबरने के लिए सारे गरीब-गुरबा की मेहनत की कमाई जब्त कर, बैकडोर से रिटेल में यफडीआई का रास्ता तैयार कर मुल्क को गंभीर आर्थिक संकट में ढकेलने की नोटबंदी की साजिश आप की समझ में नहीं आती तो आपकी बौद्धिक ईमानदारी संदेहास्पद दिखती है. छोटे-मुह बड़ी बात हो गयी हो तो मॉफ कीजिएगा. सादर.

नोटबंदी 8

इतना तवज्जो देने के लिए आभार, कर्ण सिंह चौहान जी. मैंने जगदीश्वर का वह लेख पढ़ा था और मुझे वह व्यंग्य सा लगा था. मैं पॉलिटिकल इकॉनमी का विद्यार्थी हूं और विश्वबैंक पालित 'न्यू पॉलिटिकल इकॉनमी' के अर्थशास्त्रियों द्वारा तीसरी दुनिया में निर्दयता से 'आर्थिक सुधार' लागू करने के सझाए विचारों और रणनीतियों के संदर्भ में इस पर एक लेख लिख रहा हूं. आपके आकलन से मैं अंशतः सहमत हूं कि काफी लोग, खासकर पढ़े-लिखे सवर्ण, सोचते हैं कि इससे अंततः भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा, इसके पीछे उनके पास तर्क नहीं है, मोदीजी की चमत्कारितक क्षमताओं में उनकी आस्था है. ऐतिहासित तथ्यों और दक्षिणपंथी उग्रवाद की अपनी समझ के आधार पर कह सकता हूं कि भक्तिभाव प्रधान इस देश में मोदी गिरोह जीते या हारे लेकिन देश की हार होगी, इसलिए नोटबंदी एक देशद्रोही फैसला है.

Saturday, December 24, 2016

स्वयंभू

ऐसा ही फरेबी एक शख्स था स्वयंभू भगवान
कहते किसी द्वापर युग में
आज भी मानते भगवान उसको इस कलियुग में
था शेर सा खूंखार लोमड़ी सा चालाक
वाक्पटुता से कर देता था लोगों को अवाक
था उसके पास एक अद्वितीय क्षेपक अस्त्र
दूर से ही कर सकता था दुश्मन को त्रस्त
नाम रखा था उसका नरसंहारी सुदर्शन चक्र

पला-बढ़ा वह एक पशुपालक परिवार में
बचपन में करता था गाय बृंदाबन में
चतुराई से खेल खेल-चुटकुलों में
सरमौर बन जाता साथी चरवाहों में
चुराता था दही लगाता था औरों का नाम
कहावत है बद अच्छा बुरा है बदनाम
जैसे जैसे बड़ा होता गया
लड़कियों का चहेता बनता गया
करता था उनके कपड़े चुराने की क्रीड़ा
रचता था उनके साथ रासलीला
सहता था परनारी गमन के आरोप की पीड़ा
अदालत ने शिकायतियों पर लगाया प्रत्यारोप
घोषित किया उसे सब आरोपों से निर्दोष
जवानी तक पूरे गांव का हो गया वह बेत़ाज बादशाह
ख़ाहिश मगर थी उसकी बनने की चक्रवर्ती सम्राट

इसके लिए उसने दूरगामी योजना बनाया
एक छोटे से रजवाड़े को कर्मभूमि बनाया
पहुचते दिखाया कुछ चमत्कारी कारनामें
सर्वज्ञ बन बैठ गया परदेश के चिलमन में
चली फिर उसने एक अचूक चाल
बिछाया राजकुल में फूट का जाल
कराने गया बनकर बिचौलिया दावेदारों में समझौता
दिलाया दोनों से रणभूमि में मिलने का आपसी न्योता
बनाया अपना भक्त था जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
साबित किया था मछली की आंख भेदकर
जंगखोरी जमकर किया गुणगान
युद्ध कर्म को बताया दैविक विधान
कहा खून-खराबे में फायदा ही फायदा है
जीतने पर राज हारने पर स्वर्ग बदा है
करने लगा धनुर्धर युद्ध के प्रलयंकारी परिणामों की बात
दिखाने लगा सगे-संबंधियों से मोह-माया ओ नैतिक जज्बात
देखा स्वघोषित प्रभु ने जब धनुर्धर की भावना युद्ध-विरक्ति की
दिखलाया अपना विराट रूप और माया जादुई शक्ति की
उंगलिओं पर घूमने लगा महान सुदर्शन चक्र
देखा धनुर्धर को करके आंखें थोड़ा वक्र
कहा मैं ही हूं भगवान श्रृष्टि रचने वाला
दुनिया को वर्णाश्रम की सौगात देने वाला
हुआ दोनों पक्षों में खून खराबा घमासान
हुंकार-ललकारों से गूंजा साराआसमान
गिरने लगे धरती पर बड़े-बड़े महारथी ऐसे
आंधी में पेड़ों से से फल गिरते हों जैसे
खुशी से नाचने लगे आसमान में चील्ह-बाज
मानव-मांस है जिनके भोजनों में सरताज
चंद दिनों में धरती बन गई सुनसान श्मसान
हो गई कोख उसकी जैसे एक टापू वीरान

प्रलय के बाद शांत था धरती-आसमान
पूरा किया उसने चक्रवर्ती का अरमान
बनाया राजधानी समृद्ध द्वारका नगरी में
करके विवाह एक कुलीन राजकुमारी से
स्थापित किया उसने विशाल यदुबंशी साम्राज्य
लोगों की भक्तिभाव से करता रहा एकक्षत्र राज्य
लेकिन है प्रकृति का एक ऐतिहासिक नियम
टूटता है लोगों का कभी-न-कभी भक्ति से भ्रम
करता रहा वह दिमागों पर तब तलक राज
खुला नहीं जब तक उसकी खुदाई का राज़
सिखाया था जो औरों को कुनबाई रक्तपात
यदुवंशियों ने भी कर लिया आत्मसात
कहावत है मियां के सिर मियां का लात
छिड़ गया भयानक गृहयुद्ध द्वारिका में
छिप गए खुदा घनी राज वाटिका में
जैसे ही हटा खुदा से किलेबंदी का घेरा
बेनकाब हो गया उसकी खुदाई का चेहरा
एक बहेलिए ने उसे मार गिराया
चक्रसुदर्शन किसी काम न आया
(अधूरी. क्या भाई बोधिसत्व जी आपने खुदाई पर ऐसा उकसाया कि डेडलाइन की नैतिकता भूल कर, कलम आवारा हो गया, सठियाए लोगों का कलम भी उन्ही जैसी आवारगी करता है.)
(ईमि: 24.12.2016)

Friday, December 23, 2016

मोदीनामा

मितरों मैं हूं चायवाला नरेंद्र दामोदर मोदी सामासिक संस्कृति की कब्र हमने खोदी देते हैं ऐसे-ऐसे दिलफेंक बयान फेल हो जाते खुदाओं के फरमान सूली पर चढ़ा देना मुझको ताजशाही के सौ दिन बाद किया न अगर पंद्रह-पंद्रह पेटी से हर घर को आबाद मिली न पेटी किसी को हजार दिन बाद समझना न इससे मुझे महज जुमलेबाज लटका नहीं सकते वैसे तुम मुझे शूली पे रहता हूं मैं ज़ेड-प्लस की किलाबंदी में ले आता मैं विदेश से अपार काला धन विपक्ष बन गया मगर रास्ते की अड़चन करता जब तक मुल्क काले धन से आबाद राष्ट्रवाद पर लगा गुर्राने नापाक आतंकवाद काले धन पर पलते हैं आतंकवादी और नक्सल नोटबंदी से ठिकाने लाऊंगा इनकी अकल मितरों अद्वितीय है राष्ट्र के लिए यह आत्मबलिदान बैंकों की कतारों में दे रहे लोग देशभक्ति का इम्तहान नमकहलाली के उसूलों से अटका विदेशीे कालेधन का वादा अडानी की जहाज में चलने का है कुछ अलग ही फायदा भूल जाइए मितरों विदेशी काले-पीले धन की बात पैदा कीजिए काले धन केराष्ट्रवादी स्वदेशी जज्बात बहुत से काले बाजारिए भेष बदल चीथड़ों में घूमते हैं रिक्शा या ऑटो चलाकर भोली जनता को लूटते हैं इसीलिए मितरों मैंने फेंका नोटबंदी का अचूक जाल भूखे-नंगे ही नहीं मध्यवर्गीय कालाबाजारियों का भी काल नोटबंदी ने लगा दिया कालाबाजारियों को लंबी लंबी कतारों में खंघाल कर काले धन की पाई-पाई रख दिया बैंक लॉकरों में मितरों था देश में बैंकों में नगदी का संकट विकास में बाधा कुछ देशभक्त पूरा न कर सके बैंकों से कर्ज लौटाने वादा टल गया फिलहाल देश से बैंकों के दिवालिएपन का संकट भारतमाता की खातिर झेलिए थोड़ा और भुखमरी का कष्ट किया था पंद्रह पेटी विदेशी काले धन का वायदा मिलेगा हर किसी को देशी काले धन का फायदा विदेशी काले धन के लिए रखा था सौ दिन की मियाद देशी काले धन का वायदा महज पचास दिन बाद शूली पर चढ़ाने की तब की थी गुजारिश ज़िंदा जलाने की करता हूं अबकी सिफारिश मितरों देख रहा हूं नहीं कमती बैंकों की कतार देशभक्ति की परीक्षा देनी पड़ती बार बार पांच दिन बाद हो जाएगी पूरी पचास दिन की मियाद करूंगा का मुल्क से तब कोई नई राष्ट्रवादी फरियाद इस बार भी आप ज़िंदा जलाने का अपना फर्ज न निभा पाएंगे जबतक है सिर पर ताज़ हम ज़ेड-प्लस से बाहर न आएंगे पांच साल नाकाफी है मिटाने को 70 साल की देशद्रोही दुर्गंध अगले पांच साल में मितरों फैला दूंगा राष्ट्रवादीे चंदन की सुगंध मांगता हूं पिछले पांच सालों की भूलचूक की राष्ट्रवादी मॉफी अगले पांच सालों में लगाऊंगा चिलम में हिंदू राष्ट्र की साफी (यूं ही) (ईमि : 24.12.2016)

Wednesday, December 21, 2016

International Proletariat 56

Capitalism has never been national, it uses the ideology of nationalism to rein in the working class. Capital is global in the sense it is no more geo-centric either in terms of its source or investment. I am a worker oppressed by global capital and hence I have no nation. Except the capitalist and professional revolutionaries we all are condemned to do alienated labor, what we ought to keep in mind is the task of minimizing the alienation and eventually end it by overthrowing capitalism, now in its most vulgar form and repalce it with the only alternative, the socialism. My solidarity with a Pakistani or American workers is as intense as my hatred to Indian sharks sucking the blood of workers with state assistance as Wall Mart.

शिक्षा और ज्ञान 95

बोधसत्व की एक पोस्ट पर मेरे एक कमेंट से नाराज होकर एक भक्त ने मेरे घर वालों पर मेरे दिमाग का इलाज न कराने की तोहमत लगाया, उस पर अपना कमेंट शेयर कर रहा हूं.
हमारे परिवार वालों ने यज्ञोपवीत पहनाकर दिमाग को ब्राह्मण-ज्ञान से सिंचित करने की कोशिस की थी लेकिन 13-14 साल की उम्र में 3 धागों को तोड़कर मेरे दिमाग ने मुझे बाभन से इंसान बनने का रास्ता बताया. रास्ता वैसे आसान नहीं है, सोचने का दुस्साहस और अपने विवेक के इस्तेमाल की हिम्मत जुटानी पड़ती है. शाखा का प्रशिक्षण दिमाग कुंद कर देता है. किन हिंदुओं पर किसके अत्याचार की बात कर रहे हैं? कौन है हिंदू, ब्राह्मण या शूद्र? अगर शूद्र भी हिंदू है और ब्राह्मण भी तब तो हिंदू ही हिंदुओं पर हजारों साल अमानवीय अत्याचार करते रहे हैं, उन्हें अछूत और अंत्यज बनाकर. जहां तक मेरे जेयनयू के होने के नाते मेरी निष्पक्षता का सवाल है, तो Sudarshan Pandey जी, निष्पक्षता एक ढोंग है. मैं बिल्कुल पक्षधर हूं, परंपरा और पोंगापंथी के विरुद्ध विवेक और तर्क का; सांप्रदायिक नफरत के विरुद्ध जनवादी सामाजिक चेतना का; कॉरपोरेटी लूट के विरुद्ध उत्पीड़ितों के संघर्ष का. आप ब्राह्मणवादी कुतर्कों से अपनी निष्पक्षता साबित कर रहे हैं. दोगलापन फासीवादी सोच का अभिन्न अंग है. जेयनयू का भूत भक्तों के सिर से अभी नहीं उतरा? ऐडमिशन मिल गया होता तो आप भी बाभन से इंसान बन गए होते, हिदुओं पर अत्याचार का प्रलाप न कर रहे होते.

International Proletariat 55

Auel Korr Absolutely. True that strength of national capital makes the nation state stronger in international dealings and its immediate antagonist is the national bourgeoisie and hence the bourgeois nation state. That is why Marx gave slogan of the unity of the workers of the world to be organized against the capitalism within the national boundaries with the awareness that the nationalism is the ideology of the bourgeois state for the class hegemony. The national capital in 3rd world is subservient to global imperialist capital. There is an urgent need of a new International.

Monday, December 19, 2016

नोटबंदी का घटाटोप

उस वक्त की बात है जब लिखी गयी थी यह कविता
चहकती थी हर शाख और महकती थी हर दिशा
मौसम में थी जीने-खाने की सहजता
सीमित कमाई से भी था घरबार चलता
बिछाकर सरकार ने नोटबंदी का भयानक जाल
लूट लिया मौसम से खून-पशीने बना जान-माल
बंद कर दिया है दिशाओं ने महकना
और शाखों ने चहकना
छा गया है दिशाओं पर नोटबंदी का घटाटोप
सरकार लगा रही है नंगे-भीखों पर कालाबाजारी के आरोप
शाखाएं ऊंघ रही हैं एटीम की लंबी कतारों में
भूल गए हैं खग-मृग झूमना, फुदकना और चहकना
लेकिन ये दिशाएं महकना भूली नहीं हैं
शाखाओं के तेवर में चुप रहना नहीं है
फिर से मंहकेंगी दिशाएं और चहकेंगी शाखाएं
नोटबंदी के फरेब की टूटेंगी मृगमरीचिकाएं
(यों ही)
(ईमि: 20.12.2016)

Sunday, December 18, 2016

शिक्षा और ज्ञान 94 (कविता)

एक सज्जन ने फेसबुक की अपनी पोस्ट में लिखा, "राजनैतिक दृष्टि को कविता में परोसने वाले अक्सर घटिया कविता ही लिख पाते हैं. उस पर:

ऐंतोन चेखव कला के लिए कला को सामाजिक अपराध मानते थे. स्वांतः सुखाय लिखने वाले लोग लिख कर फाइल में रख लें, सुख लेना हो तो निकाल कर पढ़ लें. पाश ने लिखा कि लोग सुरेंद्र शर्मा की कविताएं भूल जाएंगे क्योंकि वे एक लड़की से प्यार की कविता है और उनकी कविताएं याद रखेंगे क्योंकि वे सारे जहां से प्यार की कविताएं हैं जिनमें महबूब का भी प्यार शामिल है. फिर तो आप मजज़ाज, शाहिर, फैज, नागार्जुन, दुष्यंत, हबीब जालिब, इब्नेइंशां, गोरख, अदम, देबी प्रसाद मिश्र........... की कविताओं को या तो राजनैतिक नहीं मानते या घटिया म्ानते हैं. मान्यवर, राजनीति हमारा जीवन नियंत्रित करती है, जब भी सामाजिक सरोकार की रचना होगी वह राजनीति से परे नहीं होगी. अराजनिकता बहुत खतरनाक राजनीति होती है, रीढ़विहीन. शोषक-शोसित की विभाजन रेखा खिंची हुई है सबको अपना पक्ष तय करना है. 

मोदी विमर्श 52

मोदी जी मैक्यावलियन शासनशिल्प की कला में सबसे सफल प्रधानमंत्री हैं. मैक्यावली समझदार शासक को आसमान का वायदा करके धरती लूटने की सलाह देता है और यह कि यदि वायदा पूरा करने से खुद को हानि हो और वायदा का संदर्भ निकल गया हो तो उसे पूरा करना मूर्खता है. राजा के पास वायदा पूरा करने में असमर्थता के हजारों वाजिब कारण गिनाए जा सकते हैं. 80% कालाधन विदेशों में है, देश के कालाधन का केवल 5% नगदी था जो मोदी जी की नोटबंदी ने सफेद कर दिया. जनता भक्तिभाव से ओतप्रोत है कि अंततः इससे भ3ष्टाचार और कालाधन समाप्त हो जाएगा. भारत भक्ति प्रधान देश है चाहे संतोषी मांता की भक्ति हो या मोदी बाबा की.

Wednesday, December 14, 2016

ईश्वर विमर्श 41

धर्म जहां शासक वर्गों के वर्चस्व का हथियार रहा है वहीं कष्ट के अभिशप्त की राहत का (या राहत के भ्रम) का श्रोत भी रहा है और प्रतिरोध का तर्क भी. 17वीं-18वीं शताब्दी के गृहयुद्धों में ईश्वर की अवधारणा और ग्रंथों की अलग-अलग व्याख्याएं ही मुख्य मुद्दा था. मेरी पत्नी बहुत धार्मिक हैं, दयालु भी. रोज-सुबह शाम पूजा-आरती करती हैं. आस्था में तर्क नहीं होता. एक अराजकतावादी नास्तिक और मार्क्सवादी नास्तिक में फर्क यह है कि अराजक राज्य की तरह धर्म को समाप्त करना चाहता है जब कि मार्क्सवादी उन हालात को जो धर्म की जरूरत जारी रखते हैं. धर्म दुखी को खुशी और तृप्ति की आशा और खुशफहमी प्रदान करता है. जब लोगों को सही सही की खुशी और तृप्ति मिलेगी तो खुशफहमी की जरूरत नहीं रहेगी, परिणामस्वरूप न धर्म की. धर्म अपने आप बिखर जाएगा. शांति और सत्य की अलौकिकता में अन्वेषण हमारे लौकिक ज्ञान की सीमाओं का परिणाम है. भय विरासत में मिली एक अमूर्त सैद्धांतिक अवधारणा है. हमारे गांव में हमारे ही खान-दान की एक बुजुर्ग थीं जिनका कई 'भूतों-चुड़ैलों से संवाद' होता था. मैं इंटर में पढ़ता था और अनुभव से जान गया था कि भूत-वूत की बातें कपोल कल्पना है. मैंने एक दिन उनसे पूछा कि भूत-प्रेत मुझे क्यों नहीं डराते? उनका मासूम जवाब आज तक याद है. तुम्हें कैसे डराएगा, जै मनता ही ही नहीं उसे कैसे डराएगा? भूत की अमूर्त अवधारणा की बात, भय की अमूर्त अवधारणा पर भी लागू होती है.

Tuesday, December 13, 2016

नोटबंदी 8

अडानी की जहाज से उतरकर
उसने हुंकार किया
झेला है उसने चाय बेचने का संताप
इसीलिए किया नोटबंदी
बिक न सके जिससे
किसी चायवाले की चाय
बंद हो जाएगा धरती पर चाय बेचने का पाप

लगाकर माथे से मनुस्मृति
उसने पिछड़ी जाति जन्मने का प्रलाप किया
झेलनी न पड़े किसी और को आरक्षण की जिल्लत
उसने शिक्षा-नियुक्ति के निजीकरण का रास्ता साफ किया
कहा श्रमेव जयते
मजदूरों के अधिकारों के सब कानून नेस्तनाबूद किया

56 इंच का सीना तान
किया था इसने हुंकार रैलियों में ऐलान
विदेशी बैंकों में पड़ा काले धन में बसती
देश की खुशहाली की जान
कालाबाजारियों मगर सब इसके खास हैं
तो इसने चली नोटबंदी की चाल
कैशलेस के शगूफे से कर दिया रिटेल सेक्टर तबाह
साफ हो गई विश्वबैंक की मंशा से रिटेल में यफडीआई की राह

कहा था इसने किसी ललकार-हुंकार रैली में
बना जिस दिन वह शहंशाह
100 दिनों में लाएगा विदेशों से धन अथाह
बांट-देगा प्रजा में बिना भेदभाव
हर प्रजा को देगा 15-15 लाख
करने लगे जब लोग अपने हिस्से की बात
मन में आयी इसके उनकी ही जेबें लूटने की खुराफात
लुटते हुए भी भक्त हैं भक्तिभाव से ओतप्रोत
भगवान के लि सहना कष्ट वरदान है न कि प्रकोप
(ईमि: 13.12.2016)

Monday, December 12, 2016

कल्पनाशीलता

जो भी व्यवस्था के विरुद्ध जनपक्षीय कतार में है, वह वामपंथी है. कल्पनाशीलता मानव-प्रजाति का विशिष्ट गुण है. आर्किटेक्ट भवन का निर्माण पहले कल्पना में करता है, फिर कागज पर और अंततः जमीन पर.