मर्दवाद कोइ जीववैज्ञानिक प्रवृति नहीं है न ही कोइ सास्वत विचार. मर्दवाद विचार नहीं एक विचारधारा है जिसे हम अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में निर्मित-पोषित करते हैं. विचारधारा एक मिथ्या-चेतना है जो एक खास संरचना को 'सवाभाविक' और अन्तिम सत्य के रूप में मन में प्रारोपित करती है, वर्चस्व का हथियार बंटी है तथा पीड़ित और उत्पीडक दोनों को प्रभावित करते है. पुत्र काम,आना महिल्काएं इसे विचारधारा के प्रभाव में करती हैं. आइये मर्दवाद और इसके प्रतीकों, शब्दावली के खिलाफ एक निर्णायक जंग छेड़ें.
पित्रिसत्तात्मकता या मर्दवाद एक विचारधारा है जो स्त्री-पुरुष संबंधों के एक खास चरित्र को स्वाभाविक और सार्वभौमिक बताकर वैचारिक वर्चस्व स्थापित करता है. और जैसा मैंने कहा विचाधारा पीड़ित और उत्पीडक दोनों को प्रभावित करती है. हम विचारधारा के प्रभाव में किसी लड़की को जब बेटा कहकर शाबासी देते हैं तो वह भी उसी प्रभाव में उसे साबासे ही लेते है. उसे कहना चाहिए, "माफ कीजिए, यह मेरे लिए शाबासी का उल्टा है"
पित्रिसत्तात्मकता या मर्दवाद एक विचारधारा है जो स्त्री-पुरुष संबंधों के एक खास चरित्र को स्वाभाविक और सार्वभौमिक बताकर वैचारिक वर्चस्व स्थापित करता है. और जैसा मैंने कहा विचाधारा पीड़ित और उत्पीडक दोनों को प्रभावित करती है. हम विचारधारा के प्रभाव में किसी लड़की को जब बेटा कहकर शाबासी देते हैं तो वह भी उसी प्रभाव में उसे साबासे ही लेते है. उसे कहना चाहिए, "माफ कीजिए, यह मेरे लिए शाबासी का उल्टा है"
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