नारा-ए-अमन
ईश मिश्र
फ़हराना है परचम-ए-इंसानियत करना बुलंद
नारा-ए-अमन
इस जामीन को हमें लेना ही है, करके
तड़ी-पार जंगखोरों को
बनाए रखना है इस जमीं को और भी हसीं और जीबंत
करना ही है बेदखल हुकूमत से बेज़मीर हरामखोरों
को
सुन कर दस्तक उमडते युवा उमंगों के तूफ़ान का
नाना याद आने लगा है
शर्मायेदारों-जमाखोरों को
वो दिन दूर नहीं जब जंग नहीं होगी जमीं पर कभी
हथियारों के भय से मुक्त होगी दुनिया और देश
सभी
[ईमि/१३.१०.१३]
No comments:
Post a Comment