Sunday, January 13, 2013

युद्ध के विरुद्ध १


युद्ध-विरोधी एक पोस्ट पर एक मित्र ने कहा  कि वे शौक से नहीं सेना रखते. उनको दिया जवाब यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ.

 मित्र, आप की भावनाओं का आदर करता हूँ किन्तु हमारे दिमाग में बचपन से जिस प्रकार की अमूर्त अंध-बहकती भारी जाती है, हम आलोचनात्मक, वस्तुपरक दृष्टिकोण नहीं अपना पाते. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है कि दो नौकरी पेशा सैनिक ओनी ही तरह के २ अन्य नौकरी-पेशा सनिकों को बिना किसी कारण बर्बरता पूर्वक मार डालें लेकिन सेना में भरती होने के बाद इन्हें यही सिखाया जाता है.  सरहद की इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण वारदातों पर दावे-प्रति-दावे के बीच वास्तविकता विवादास्पद हो जाती है. आधुनिक राष्ट्र-राज्य के सिद्धांत ने आवाम के साथ एक बहुत बड़ा फरेब किया है कि पता ही नहीं चलता कि कब कौन देश बन जाए. जैसे अभी आप बन गए, "हम शौक से सेना नहीं रखते" आप के पास कोई अपनी सेना है कि भारतीय सेना में भएर्ती और हथियारों की खरीद-फरोख्त और दलाली आपसे पूछ कर ली जाती है? अफगानिस्तान और इराक पर हमले के विरुद्ध यूरोप और अमेरिका में करोणों लोग सड़कों पर उतरे, "हम" वाले तर्क से सेना पर उनमे से हर किसी का उतना ही हक़ होना चाहिए था जितना बुश का. हर मासूम मौत निंदनीय है. लेकिन यह सामरिक नहीं राजनैतिक मुद्दा है जो जंग से हल होने के बजाय उलझता जाएगा. मित्र, गुजारिश है कि हर  मासूम ज़िंदगी बेशकीमती है उसे अकारण नष्ट करना मानवता के विरुद्ध घोर अपराध है.ऐसे कुक्रियों पर गुस्सा आना लाजमी लेकिन मुझे गुस्सा इस बात पर भी आता है कि लोगों को ऐसी ही अन्य मासूम मौतों पर क्यों नहीं आता जिनमें ज्यादातर के अपराधी वर्दी वाले लोग हैं? छत्तीसगढ़ में एक आला पुलिस अधिकारी एक आदिवासी शिक्षिका के जनांग में कंकड-पत्थर ठूंसता है उसे सम्मानित करने पर हमें गुस्सा क्यों नहीं आता? छत्तीसगढ़ में सलवाजुडूम और पुलिस द्वारा हजारों आदिवासी युवक-युवतियों की हत्याओं और युवतियों के बलात्कार पर क्यों नहीं अआता? सैनिकों द्वारा मणिपुर की मनोरामाओं की बलात्कार के बाद जननांग मे गोली मर कर ह्त्या और १२ साल से शर्मीला के अंसन पर क्यों नहीं आता? जंग किसी मसले का समाधान नहीं हो सकता क्योंकि खुद मसला हाई. आइये दुनियाँ के अमन-पसंद लोगों के साथ हाथ मिलाएं और अयुद्धोंमाद का पुरजोर विरोध करें.

No comments:

Post a Comment