Saturday, January 12, 2013

लल्ला पुराण ५८ युद्धोन्माद


 युद्धोन्मादी देश-भक्ति की  भावना के जरिये जनद्रोही तानाशाहियाँ जन-असंतोष से बचती हैं. सीमा पर हादसे के दावे-प्रति दावे के बारे में वास्तविकता जान पाना बहुत मुश्किल होता है. जब भी सरकारों को 'देश' से खतरा पैदा लगता है तो 'संयोग' से 'सीमा पर' से देश को खतरा पैदा हो जता है. जब पाकिस्तान की आवामी ताक़तें इस्लामी कानूनों और कट्टरपथियों के खिलाफ लामबंद हो रही हैं, सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति ज़रदारी के भ्रष्टाचार और कालेधन का चिट्ठा खोल रहा है; जब २३ वर्षीय लड़की के बलात्कार और ह्त्या से उभरे  संचित युवा आक्रोश ने भ्रष्टाचार से लिप्त राजपथ के चूले हिला रहा हो; दिल्ली से उठा शोला सुरक्षा-कर्मियों द्वारा हत्याओं और बलात्कारों को भी मुद्दा बना रहा हो; आदिवासियों और गरीबों के निरंतर दमन और धन्ना सेठों के लिए किसानों की जमीने हथियाने के विरुद्ध नारों की बुलंदी साउथ ब्लाक तक पहुँच रही हो; भारती खुदरा बाज़ार को साम्राज्यवादी वालमार्ट के  झोली में डालने के विरुद्ध जनमत तैयार हो रहा हो ऐसे में युद्धोन्माद और अंध-राष्ट्रवाद शासकों के हथियार बन जाते हैं. मैं सीमा पर सैनिकों की ह्त्या की कड़ी निंदा करता हूँ लेकिन युद्ध का पुरजोर विरोध, चाहे आप; मुझे राष्ट्र-द्रोही मान लें. युद्ध खुद एक मसला है यह किसी मसले का निदान नहीं हो सकता, इसे से संवाद से ही सुलझाया जा सकता है. आवाम पर युद्ध थोपने के कोशिशों को इतिहास कभी नहीं माफ करेगा.
"न मेरा घर है खतरे में, न तेरा घर है खतरे में
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निजाम-ए-ज़र हैं खतरे में" (हबीब जालिब)

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