न तो राष्ट्र हमेशा रहे हैं न् युद्ध. राष्ट्र-राज्य तो आधुनिक संस्थान हैं. नियमित सेना की अवधारणा भी हमेशा नहीं रही है. वजूद में आने के बाद लाखों साल मनुष्य आदिम समूहों में रहा है जब न संपत्ति थी, न् पितृसत्ता, न् राज्य. मध्य युग के शासक ज्यादातर भाड़े के पेशेवर सैनिकों के बल पर लड़ते थे. शिवाजी और औरंगजेब दोनों की सेनाओं में पेशेवर भोइपुरिया सिपाहे थे. शिवाजी द्वारा चौथ समाप्त करने की घोषणा के बाद भोजपुरिया सैनिकों ने म्यान में तलवारें डाला और बोले जयराम जी के अब दूसरे राजा के लिये लड़ेंगे और शिवाजी को अपना फैसला लेना पड़ा था. चौथ लूट के माल का चौथाई होता था जो सैनिकों में बंटता था, यानि लूट युद्ध का भिन्न अंग हमेशा से रहा है. इसी लिये आग्रह है कि ऐसा वर्चस्व मुक्त समाज बनाया जाये जिसमें युद्ध अनावाश्याक हो जाए.
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