Monday, January 28, 2013

क्षण-से-क्षण-तक



जाया हो चुकी ज़िदगी क्या लुफ्त उठाएगी
खो चुकी जो खुद को लुफ्त क्या खाक लायेगी
जीने और जीने के बीच है पल भर का फर्क 
जिंदा कौमों की ज़िंदगी मांगे हर पल का तर्क  
इसीलिये जीना है क्षण-से-क्षण-तक हरेक क्षण
गुनाह है जाया करना जीवन का एक भी कण
मांगेगी तारीख जब एक-एक पल का हिसाब 
खोलोगे जाया वक़्त के लिये कौन सी किताब? 
[ईमि/२८.०१.२०१३]

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