इस पार
प्रिये तुम हो मधु है
नये का अज्ञात भय दिखाते हरिवंशराय बच्चन
रोकते हैं तलाशने से नया कोई मधुवन
देते यथास्थिति
को बनाए रखने का संदेश
बदलाव के
खतरों से बचने का उपदेश
छिपा जाते
हैं वे इतिहास की प्रमाणित बात
बदलाव है
इंसान का कुदरती ज़ज्बात
कहते हैं
कि इस पार प्रिये तुम हो मधु है
उस पार न
जाने क्या होगा
हकीकतन छलावा
है यह अमूर्त डर
और डर कर
व्यर्थ है जीवन बसर
उठाओगे नहीं
जब तक नई खोज का खतरा
जड़ता के
जाल में फंस जाता जीवन का कतरा कतरा
इस पार तो
जो है मालुम ही है
देखो उस
पार नज़ारा क्या है
अनजाने
के अन्वेषण में ही
जीवन का
गतिविज्ञान रचा है
होता
क्यों मन डगमग
तट की हिलकोरों से
कश्ती
उतारो लो प्रेरणा इन मचलती लहरों से
करो पकड़
मजबूत पतवारों पर
हो जाओ
सवार तम सागर के मंझधारों
पर
लिए
हाथों में हाथ हम साथ जो होंगे
तूफानों
से कश्ती चुटकी में निकाल लेंगे
निकलेंगे
चीर कर जब तमसागर के तूफ़ान
उस पार
दिखेगा जगमगाता एक नया बिहान
छोडनी
होगी आदत मगर हिलकोरों से डरने की
जुटानी
होगी हिम्मत अनजाने खतरों से लड़ने की.
[ईमि/२८.०१.२०१३]
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