Monday, January 7, 2013

उठो मेरी बेटियों


उठो मेरी बेटियों 
ईश मिश्र

उठो मेरी बेटियों मिटा दो सारी लक्ष्मण रेखाएं 
तोड़ दो खूनी पंजे मर्दवादी अहंकार के 
वह पंजा चाहे राम का हो या रावण का 
बापू आशाराम का या संघी भागवत का 
तोड़ दो भोग्या और पूज्या के जेलखाने 
जला दो पिंजरे हुस्न की इबादत के
शराब-ओ-सबाब के स्वागत के
कब्जा करो ये दिन और रातें   
मत सुनो मर्दवादियों की बेहूदी बातें 
ये रातें ये सड़कें हैं आपकी 
नहीं बलात्कारी के बाप की 
देख ध्वस्त होता अपना मजबूत किला 
सामंती-मर्दवाद गया है बौखला 
करो मिलकर प्रहार इस किले पर लगातार 
चरक चुका है पहले ही देख स्त्री चेतना की धार 
मटियामेट कर दो इसे करो निर्णायक वार 
जो दरिया झूम के उट्ठा है स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी का 
तिनकों से न रुकेगा अब यह प्रवाह खुद्दारी का
[ईमि/०७.०१.२०१३]

2 comments:

  1. वाह...ईशमिश्र जी...बहुत सुन्दर प्रस्तुति....:)

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  2. शुक्रिया, तरुना जी.

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