जब नेता अफसर सभी हरामखोर हों
जनतंत्र को समझते बाप की जागीर हों
शर्माये की सल्तनत के पक्के तुकड्खोर हों
जो कुर्सी के लिए बेचते अपना ईमान हों
कमीनेपन पर होता जिनको गुमान हो
करते रक्त-क्रीडा लेते गाँधी का नाम हों
जनता पर जुल्म-जोर ही जिनकी शान हो
मेहनतकश को हक है हथियार उठा लें.
जब विस्थापन व्यथा से जूझते किसान हों
जिस्म पर जिनके लाठी-गोली का निशान हो
कर्ज़ और खुदकुशी जिनके विधि का विधान हो
कार्पोरेटी मार से मजदूर बेजुबान हों
भूख से मरते जब आज भी इंशान हों
मेहनतकश को हक है हथियार उठा लें.
कलम को भी हथियार बना ले
बंदूक नहीं है तो पत्थर उठा ले
पत्थर नहीं है तो हाथ उठा ले
जालिम के टैंक को फूंक से उडा दे
तोपों के शोर नारों से दबा दे
जुल्म के खिलाफ संघर्ष की आवाज़ बुलंद कर दे
सारे सिराजुद्दौला बन गए हों जब मीर जाफर
मेहनतकश को हक है हथियार उठा लें.
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