एक बार अपने कालेज में किसी मुद्दे पर मैं और एक सहकर्मी मित्र अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे. शिक्षक संघ (ट्रेड यूनियन) की नेत्रित्व प्रबंधन के साथ था. एक शिक्षक एक बार आये थोड़ी देर हमारे साथ बैठे और बोले "आपकी बातें १००% सही हैं, लेकिन कितने लोग आपके साथ खड़े होंगें?" मैंने कहा, "साथ क्ल्हाड़े होने की बात आयेगी तो आप भी नहीं साथ देंगे. यदि ज्यादातर लोग आपकी ही तरह चिरकुट हों तो हम क्या कर सकते हैं. (फूट नोट: हमें अपेक्षा से अधिक कामयाबी मिली क्योंकि विद्यार्थी हमारे साथ आ गए थे, या कहानी फिर कभी). कुछ ही साल बाद कालेज में शिक्षकों और प्रबंधन के बीच एक अहम् संघर्ष की नौबत्त आ गयी यूनियन के अध्यक्ष ने कायरतापूर्ण पलायन का परिचय देते हुए त्यागपत्र दे दिया. उसी शिक्षक संघ की आमसभा ने सर्व-सम्मति से मुझसे अध्यक्ष बन कर आन्दोलन का नेत्रित्व करने का आग्रह किया. आगे की कहानी फिर कभी.
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