हिन्दुत्ववादी आतंकवाद पर एक पोस्ट पर मेरे कुछ कमेन्ट:
@Drvk Singh दुष्प्रचार और अफवाह फैलाना वैचारिक फ्रूप से दिवालिये कट्टरपंथियों-- संघियों/जमातियों का काम है. यह एक वास्तविक तस्वीर एक टिप्पणी के साथ है, दुष्प्रचार और कुतर्क तो आप कर रहे हैं, तथ्यों-तर्कों से विहीन हवाईए आरोप लगाकर. इससे देशद्रोहियों की फजीहत हो सकती है, राष्ट्र-समाज की फजीहत कैसे हो रहे है. ये देशद्रोही धफ्र्म-क्षेत्र-जाति के नाम पर विषवमन करते हैं और पिछले दरवाजे से अमेरिकी साम्राज्यवाद और यहूदीवाद की जर-खरीद गुलामी करते हैं.
Virendra Pratap Singh सर, शस्त्र-प्रशिक्षण में कोई दोष नहीं है, दोष उसके मकसद का है. लड़कियों की आज़ादी पर सांस्कृतिक चौकीदारी करने वाले और लक्ष्मण-रेखा के अंदर रहने की नशीहत देने वाले और सामूहिक बलात्कारों के अंजाम देने वाले लोग यदि लड़कियों को शस्त्र सांचाएलन का प्रशिक्षण दें तो उनकी नीयत पर संदेह होना लाजमी है. ये शस्त्र कहाँ से आये? असीमानंद/कर्नल पुरोहित/सुनील जोशी/साध्वी प्रगया .... किसके इशारे पर साम्प्रादायिक ध्रुवीकरण से चुनावी फायदे के लिये आतंक्वादे गतिविधियों को अंजाम देते रहे. गोली टोपी लगाकर संघियों का पाकिस्तानी झंडा फहराने के पीछे क्या मकसद था? सर, मकसद सबसे महत्व-पूर्ण होता है और समाज में घृणा फैलाने के लिये शस्त्र-प्रशिक्ष्याँ निश्चित h देश-द्रोह का कुकृत्य है.
Vinod Shankar Singh सर, आपके सवाल का जवाब देने का सुपात्र मैं नहीं हूँ.क्योंकि मैं "नक्सल" नहीं हूँ. बलात्कारी सदा एक सामाजिक अपराधी है वह चाहे अपने को मार्क्सवादी कहे; आईपीएस हो या जिला जज(कल गोंडा के एक जज के बारे में खबर थी); छात्र-नेता हो या मंत्री का र्श्तेदार (काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छेड़खानी करने वाले, उ.प्र. के मंत्री के रिश्तेदार लम्पट-छात्र्नेत्याओं के विरुद्ध प्रदर्शनकारी छात्राओं को कुलपति/जिला प्रशासन ने धमकाया); मंत्री हो या सेना का अधिकारी/जवान (मणिपुर और कश्मीर में ह्त्या और बलात्कार के इनके रिकार्ड कई शतक बना चुके हैं. सर, तथ्यों-तर्कों से रहित किम्वादंतियों और अफवाहों के आधार पर निर्णयात्मक वक्तव्य देना ज्यादातर लोगों की आदत बन गयी है. इससे बचना चाहिए. आपको शायद मालुम नहीं कि नाक्सलबदी के की विरासत की दावेदार २ दर्जन से अधिक संगठन हैं और इनमे मतैक्य होता तो अलग-अलग क्यों होते. उनमे से कई [सीपीआई (माले-लिबरेसन समेत)] तो संसदीय राजनीति के रास्ते पर हैं. नक्सल शब्द के साथ इतने मिथ और रहस्यवाद जुड गए हैं कि लोग रहस्य तोड़कर वास्तविकता तक पहुँचने की बजाय कही-सूनी बातों और अफवाहों के आधार पर फतवेबाजी करते हैं. कृपया बताएँगे कि किस "नक्सल" की फितरत बलात्कार करना है? सर, क्रांतिकारी भी हमारी आपकी तरह का ही इंसान होता है, थोड़ा अधिक संवेदनशील. जो नवजवान हमारी आपकी तरह सुविधा-संपन्न कैरियर छोड़ कर सर पर कफ़न बाँध कर निकलते हैं, उनकी समझ से मतभेद हो सकता है, उनकी नीयत पर संदेह करना नाइंसाफी है. मार्क्सवादी होने के लिए किसी के कथ्य-कृत्य सनद हैं उसे किसी और सनद की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मार्क्सवाद सिद्धांत और व्यवहार की द्वंद्वात्मक एकता का विज्ञान है. हिन्दू-मुसलमान को गाली देना मेरा काम नहीं है. मेरे लिए तो हिन्दू-मुसलमान; ब्राह्मण-क्षत्रिय जैसी जीववैज्ञानिक दुर्घटना जैसी उपाधियां अपने आप में गालियाँ हैं क्योंकि ये कर्म-जन्य अस्मिता पर ग्रहण लगा देते हैं. शब्द प्रयोग से अर्थ ग्रहण करते हैं. "हिंदुत्व" शब्द साम्राज्यवादी दलाली करने वाली एक देश-द्रोही, विघटनकारी, साम्प्रदायिक राजनीति से जुड गया है और हिंदुत्व की आलोचना किसी धर्म की आलोचना नहीं बल्कि एक खास किस्म की जन-विरोधी खतरनाक राजनीति की आलोचना है. प्रणाम सर. आपका यदा-कदा दर्शन सुखद लगता है.
@Drvk Singh दुष्प्रचार और अफवाह फैलाना वैचारिक फ्रूप से दिवालिये कट्टरपंथियों-- संघियों/जमातियों का काम है. यह एक वास्तविक तस्वीर एक टिप्पणी के साथ है, दुष्प्रचार और कुतर्क तो आप कर रहे हैं, तथ्यों-तर्कों से विहीन हवाईए आरोप लगाकर. इससे देशद्रोहियों की फजीहत हो सकती है, राष्ट्र-समाज की फजीहत कैसे हो रहे है. ये देशद्रोही धफ्र्म-क्षेत्र-जाति के नाम पर विषवमन करते हैं और पिछले दरवाजे से अमेरिकी साम्राज्यवाद और यहूदीवाद की जर-खरीद गुलामी करते हैं.
Virendra Pratap Singh सर, शस्त्र-प्रशिक्षण में कोई दोष नहीं है, दोष उसके मकसद का है. लड़कियों की आज़ादी पर सांस्कृतिक चौकीदारी करने वाले और लक्ष्मण-रेखा के अंदर रहने की नशीहत देने वाले और सामूहिक बलात्कारों के अंजाम देने वाले लोग यदि लड़कियों को शस्त्र सांचाएलन का प्रशिक्षण दें तो उनकी नीयत पर संदेह होना लाजमी है. ये शस्त्र कहाँ से आये? असीमानंद/कर्नल पुरोहित/सुनील जोशी/साध्वी प्रगया .... किसके इशारे पर साम्प्रादायिक ध्रुवीकरण से चुनावी फायदे के लिये आतंक्वादे गतिविधियों को अंजाम देते रहे. गोली टोपी लगाकर संघियों का पाकिस्तानी झंडा फहराने के पीछे क्या मकसद था? सर, मकसद सबसे महत्व-पूर्ण होता है और समाज में घृणा फैलाने के लिये शस्त्र-प्रशिक्ष्याँ निश्चित h देश-द्रोह का कुकृत्य है.
Vinod Shankar Singh सर, आपके सवाल का जवाब देने का सुपात्र मैं नहीं हूँ.क्योंकि मैं "नक्सल" नहीं हूँ. बलात्कारी सदा एक सामाजिक अपराधी है वह चाहे अपने को मार्क्सवादी कहे; आईपीएस हो या जिला जज(कल गोंडा के एक जज के बारे में खबर थी); छात्र-नेता हो या मंत्री का र्श्तेदार (काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छेड़खानी करने वाले, उ.प्र. के मंत्री के रिश्तेदार लम्पट-छात्र्नेत्याओं के विरुद्ध प्रदर्शनकारी छात्राओं को कुलपति/जिला प्रशासन ने धमकाया); मंत्री हो या सेना का अधिकारी/जवान (मणिपुर और कश्मीर में ह्त्या और बलात्कार के इनके रिकार्ड कई शतक बना चुके हैं. सर, तथ्यों-तर्कों से रहित किम्वादंतियों और अफवाहों के आधार पर निर्णयात्मक वक्तव्य देना ज्यादातर लोगों की आदत बन गयी है. इससे बचना चाहिए. आपको शायद मालुम नहीं कि नाक्सलबदी के की विरासत की दावेदार २ दर्जन से अधिक संगठन हैं और इनमे मतैक्य होता तो अलग-अलग क्यों होते. उनमे से कई [सीपीआई (माले-लिबरेसन समेत)] तो संसदीय राजनीति के रास्ते पर हैं. नक्सल शब्द के साथ इतने मिथ और रहस्यवाद जुड गए हैं कि लोग रहस्य तोड़कर वास्तविकता तक पहुँचने की बजाय कही-सूनी बातों और अफवाहों के आधार पर फतवेबाजी करते हैं. कृपया बताएँगे कि किस "नक्सल" की फितरत बलात्कार करना है? सर, क्रांतिकारी भी हमारी आपकी तरह का ही इंसान होता है, थोड़ा अधिक संवेदनशील. जो नवजवान हमारी आपकी तरह सुविधा-संपन्न कैरियर छोड़ कर सर पर कफ़न बाँध कर निकलते हैं, उनकी समझ से मतभेद हो सकता है, उनकी नीयत पर संदेह करना नाइंसाफी है. मार्क्सवादी होने के लिए किसी के कथ्य-कृत्य सनद हैं उसे किसी और सनद की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मार्क्सवाद सिद्धांत और व्यवहार की द्वंद्वात्मक एकता का विज्ञान है. हिन्दू-मुसलमान को गाली देना मेरा काम नहीं है. मेरे लिए तो हिन्दू-मुसलमान; ब्राह्मण-क्षत्रिय जैसी जीववैज्ञानिक दुर्घटना जैसी उपाधियां अपने आप में गालियाँ हैं क्योंकि ये कर्म-जन्य अस्मिता पर ग्रहण लगा देते हैं. शब्द प्रयोग से अर्थ ग्रहण करते हैं. "हिंदुत्व" शब्द साम्राज्यवादी दलाली करने वाली एक देश-द्रोही, विघटनकारी, साम्प्रदायिक राजनीति से जुड गया है और हिंदुत्व की आलोचना किसी धर्म की आलोचना नहीं बल्कि एक खास किस्म की जन-विरोधी खतरनाक राजनीति की आलोचना है. प्रणाम सर. आपका यदा-कदा दर्शन सुखद लगता है.
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