Wednesday, January 23, 2013

जीने का मकसद


महज जीना नहीं है मकसद
मकसद है जीना एक अच्छी ज़िन्दगी
न हो जिसमें याचना या कोइ बंदगी
मतलब है अच्छी ज़िंदगी का करना हासिल खुशियाँ
जलानी पड़ेंगी ग़मों की सारी-की-सारी  दुनियाँ
हासिल हो सकती असली खुशी एक खुशहाल समाज में
समानता और इन्साफ के राज में
ज़िंदगी का नहीं है कोइ जीवनेतर उद्देश्य
जीना अच्छी ज़िंदगी है स्वयं सम्पूर्ण उद्देश्य
नैतिकता और न्याय पर बहस-जिरह
चलते हैं साथ-साथ अनचाहे परिणामों की तरह
इसलिए ऐ खुशहाली पसंद इंसानों
दुनिया के दुखों को पहचानो
रहना चाहते हैं अगर खुशहाल और आज़ाद
बनाना होगा दुखों से मुक्त समाज
न होगा कोइ तख़्त न ही कोई  ताज़
खत्म करना होगा ज़र का निजाम
हाकिम अपना खुद होगा आम इंसान
मिट जाएगा दुनिया से दुखों का नाम-ओ-निशान
(ईमि़/24.01.13)

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