Sunday, December 30, 2012

तारीख गवाह है


तारीख गवाह है
ईश मिश्र 

लाल सलाम साथी.
निश्चित ही  नया सवेरा आएगा
मैं नहीं, आवाम लायेगा
उसके छोटे-छोटे पुर्जे हैं हम
मिल जाएँ तो हममे अपार है दम
करती हैं कई छोटी नदियाँ मिल महानदी का निर्माण
भरते हैं ये पुर्जे युग्कारी मशीन में प्राण
आएगा ही नया, नया विहान
होंगे कर्णधार अबकी छात्र-मजदूर किसान
न होगा कोई मालिक न कोई गुलाम
समता का सुख भोगेगा सभ्य इंसान

तारीख गवाह है, आये हैं पहले भी कई नए विहान
लेकिन चंद तेज-तर्रार ही चलाये थे वे अभियान
पहले भी  ज़ुल्मतों के दौर  होते रहे हैं नेस्त-नाबूद
बनता रहा है मगर, नए जालिमों का वजूद
इसीलिये  नया होगा यह नया बिहान
ज़ुल्म के मातों के बहुमत का यह अभियान
न होगा कोई ज़ालिम न कोई  ज़ुल्म
समता के सिद्धांत का होगा सबको इल्म
गुलामी का किसी को अधिकार न होगा
हर इंसान को आज़ाद होना ही होगा
बिलकुल उजला होगा नया बिहान
अँधेरे का न होगा नाम-ओ-निशान
लाल सलाम
[ईमि/३१.१२.१२]

खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी


खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी

हर दौर कभी-न-कभी कभी खत्म होता है 
खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी
देखना है आ जाए न नया दौर  नयी ज़ुल्मतों का 
आता रहा है नया ज़ालिम पुराने की जगह  
यही तजुर्बा है अभी तक तारीख का 
लाखों वर्ष जब तक आदिम इंसान था 
न था जर न ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान था
लाना है यदि दुनिया में एक उजाला बिहान 
खत्म करना होगा जड़ से जर का निजाम 
ईमि[३१.१२.१२]

Saturday, December 29, 2012

मर्दवादी वेद


मर्दवादी वेद

नहीं थी आदिम समाज में ऐसी मर्द्वादी बर्बरता
शुरू हुआ यह जब से आई मनुष्यों में सभ्यता
जकडा जंजीरों में गुलामों को औरत को किया कैद
लिखना शुरू किया अरस्तुओं ने मर्दवादी वेद
फांदने लगी जब वह घर की जेल की चारदीवारी
मर्दवाद ने प्रचारित किया सेक्स की मशीन है नारी
मशीन बनने से किया इंकार जब दावे के साथ
मर्दवाद ने माना इसे कलियुग का भीषण उत्पात
कहा उसने जब है वह हाड़-मांस की साबूत इंसान
बौखला कर मर्दवाद बन गया भयानक हैवान
-- ईमि[30.12.12]

Friday, December 28, 2012

International Proletariat 14

People must occupy the government to control the means of production. It is welcome sign that Americans, having been taught; preached; and coerced by its ideological; political; legal/coercive apparatuses about the catastrophic consequences of collectivization/socialization (non-privatization) of the means of production for almost a century, have started discussing it. It is a remote sign of a new internationalism and future world revolution. More about it later. Brutal "red hunting"  during the "red scares" including killing of the scientists like Rosenberg couple under McCarthyism is now the part of history. We must apply common sense to realize that individuals do not exist as individuals, as we are told, but in and through a society; individual interest and freedom is safest in collective interest and freedom; collective wisdom is superior and more effective than individual wisdom, we can create a beautiful world free from hunger, exploitation and domination, mind is free and the head is held high.. Earth has enough for everybody's needs but not for anybody's greed.

Anarchism, despite its selfless good wills, can not be a solution due to its adherence to basic liberal assumption of centrality of individuation and lack of dialectical approach, non-bureaucratic socialism is the only alternative transition to a really anarchist(classless/stateless) society.

मदहोश सल्तनतें


मदहोश सल्तनतें गिरती हैं अपने ही भार से
त्वरण की जरूरत हैं जागरूकता के उभार से

Thursday, December 27, 2012

लगा दो आग इस कमज़र्फ जमाने को अभी


लगा दो आग इस कमज़र्फ जमाने को अभी
रचो  नया ज़माना गज़लगो हों जिसमे सभी
शब्दों में है रवानगी और ताकत इतनी अथाह
थरथराते हैं इनसे सारे के सारे कमीने तानाशाह
बने गर गज़ल जंग-ए-आज़ादी का लाल फरारा
जीत लेंगे हम मेहनतकश संसार सारा का सारा
                                             ईमि[27.12.12]

मेरी गज़ल तो गज़ल नहीं एक नारा है


तरजीह नहीं मिलती दान में या दुकान पर
कमाई जाती है कर्मों से इज्ज़त की तरह
हुनर है जो गढ़कर शब्द गज़ल रचने की
घी से इसकी धधका दो आग युवा आक्रोष की
बन जाए यह आग ऐसा भीषण दावानल
बुझा न सकें जिसको तोप-टैंकों के दमकल
बना दो गज़ल को एक ऐसा विप्लवी नारा
दहल जाए जालिमों का संसार सारा का सारा
गजल हो हमारी हरकारा इन्किलाब की
महरूमों-ओ-मजलूमों के सिसकते ख़्वाब की
मेरी गज़ल तो गज़ल नहीं एक नारा है
इन्किलाबी जज्बातों की एक अदना हरकारा है.[ईमि/२७.१२.१२]

Wednesday, December 26, 2012

"नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा"


नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा

"नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा"
तब अब्र भी होगा माहताब भी
होगी गज़ल गतिशील और आज़ाद
कहेगी बात इंसानी उसूलों की

बहुत सुन्दर, लिखते रहो बधाई हो
खत्म लेकिन रकाबत की लड़ाई हो (हा हा )
हाथ मिला ले अपने इस रकीब से
रिश्तों की आज़ादी देखो करीब से
लेकर हाथों में हाथ हम चलेंगे साथ साथ
आएगा इन्किलाब, होगा दुनिया में इन्साफ
इमि[27.12.12]

सहो मत प्रतिकार करो



सहो मत प्रतिकार करो
मर्दवाद के दुर्ग पर बार बार वार करो
फांसी से बलात्कारी के न खत्म होगा यह सिलिला
खत्म करेगा जड़ से इसे नारीवाद का काफिला
[27.12.12]

Tuesday, December 25, 2012

बलात्कारी सोच

बलात्कारियों को फांसी की मांग नहीं की जा रही है, नारों में अतिरंजना होती है. बलात्कारियों को क़ानून-सम्मत सज़ा एक पहलू है, हमला इसके श्रोत- नारी को जिस्म और उसके बलात्कार को मान्-मर्दन  समझने वाली मर्दवादी विचारधा-- पर होना चाहिए जो बलात्कारी मानसिकता को जन्म देती है और बलत्कृत को ही  कलंकित मानती है. अखबार वाले बदनामी का डर दिखाकर उसका "बदला हुआ नाम" बताते है, बलात्कारी को बदनामी से बचाने की जरूरत नहीं होती!. स्वस्फूर्त उमड़े संचित युवा-उमंगों के मगासागर ने इस घटना की आड़ में निहित स्वार्थों की राजनीति करने वालों को भी पीछे धकेल दिया. जो काम शर्मिला के १२ साल के अमरण अनसन न् कर सका; सोनवी सोरी की जेल की यातना की चीख न् कर सकी वह काम युवा उमंगों के स्वस्फूर्त विरोध ने कर दिया. संसद में जनप्रतिनिधियों को और प्रधानमंत्री/गृहमंत्री को बयान देना पड़ा, उनके बयान प्रकारांतर से भले ही नाक़रीविरोधी विचारधारा को ही पोषित करने वाले ही क्यों न हों? प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि महिलाओं की सुरक्षा का बेहतर इंतज़ाम किया जाएगा, अभी तक पता नहीं किसने रोक रहा था?  यह स्वस्फूर्त, अनियंत्रित किन्तु स्व-अनुशासित युवा प्रतिरोध नेतृत्व-विहीन है और लक्ष्य और दुश्मन की स्पष्टता नहीं नहीं है किन्तु यह आने वाले तूफ़ान का पूर्वाभास, एक नए क्रांतिकारी छात्र-आंदोलन की बुनियाद का संकेत है. क्षणिक उदगार कह कर इसका सरलीकरण नहीं होना चाहिए. यह संचित आक्रोश का उदगार है, जरूरत है दिशा और लक्ष्य की स्पष्टता की इनकी तलाश में हम मदद करें.

Monday, December 24, 2012

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने

शर्म आती है मनुष्य की दरिंदगी की ख़बरों से
हटती ही नहीं ये ख़बरें मगर कभी नज़रों से 

लगता है हम शर्मिस्तान में रहते हैं
हर रोज कई शर्मनाक ख़बरें सहते हैं.

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
खुदा की इस दुनिया से बुरा क्या होगा?
         [ईमि/२५.१२.'१२ ]

नारी की सहनशीलता

नारी की सहनशीलता उसकी ताकत नहीं कमजोरी है. परिवार नामक संस्था बनाए रखने की इकतरफा जिम्मेदारी नारी की क्यों? स्वेच्छा से औरों के लिये त्याग करना, पारंपरिक, पितृसत्तात्मक, नैतिक निष्ठाओं के चलते कष्ट सहना, प्रियजनों के सुख में सुख तलाशना;......... ये सब वान्छनीय मानवीय गुण हैं किन्तु पारस्परिकता के अभाव में में ये दुर्गुण बन जाते हैं, पुरुष-प्रधानता के वर्चस्व की विचारधारा को वैचारिक आधार प्रदान करते है और ईंधन पानी भी. जब तक ये सहती रहीं; सधती रहीं, परिवार  नाम की संस्था और पुरुष प्रधान समाज सामंजस्य से चलते रहे. जब नारी सधना, सहना बंद करने लगी; जवाब देने के साथ सावाल भी करने लगी; कुछ भी सहने के तर्क पर विचार करने लगी; हुक्म-तालीमी से इंकार करने लगी; आज़ादी और समानता पर अधिकार जताने लगी; अंतरिक्ष की उड़ान भरने लगी; .......; तो परिवार नामक संस्था में क्यों दरार आने लगी? मर्दवाद की विचारधारा के लंबरदारों को क्यों सामाजिक संत्रास मिलने लगा कि उसके पहरुए बौखलाहट में दरिंदगी करने लगे हैं? आज़ादी तथा गैरत की ज़िंदगी चाहती हो तो सहने से इंकार कर दो, हर रवायत पर सावाल करो नारी! सहने की संस्कृति से विद्रोह करो; सहो मत, प्रतिकार करो. दुश्मन का ताकतवर होने का मिथ और गुमाव तभी तक रहता है जब तक पलटवार न करो. कलम का पलटवार ज्यादा करगर होता है लेकिन चांटे का भी जवाब देते रहना है -- चांटे, लात और दांत से. 

Sunday, December 23, 2012

जला देना होगा वह शब्द कोष


जला देना होगा वह शब्द कोष
ईश मिश्र 

इसीलिये मैं बार-बार दोहराता हूँ
लटका देने से जालिम को फांसी पर
नहीं खत्म होगा बलात्कार
इंसानियत पर मर्दवादी अत्याचार
जरूरत है निरंतर बमबारी की
मर्दवाद के प्राचीन, वैचारिक दुर्ग पर
तोड़ने की हठ-मठ और कर्मठ
उतार फेंकने की सर से पूर्वजों की लाशों का बोझ
लदीं अा रहीं जो पीढ़ी-दर-पीढी इंसानियत के ऊपर
परंपरा, मर्यादा अौर रीति-रिवाज बन कर
बदलनी होगी सडी-गली मर्दवादी सोाच
नारी-नैसर्गिकता को बताये जो गाली गलौच
मिटा देने होंगे वे सारे शब्द और मुहावरे
इंसानी रिश्तों को जो यौनिक  परिभाषा दें   
जला देना होगा वह शब्द कोष
कन्या-जन्म को देता जो दोष
घूर में डालना  वह शास्त्र अौर लोकोक्ति
नारी जननांग को समझे जो रद्दी की टोकरी 
नेस्त-नाबूद करने होंगे ऐसे सारे विचार
मर्दानगी की बदबू को कहें जो उच्च विचार

रचने होंगे नए शब्द और नए रिश्ते
लिखने होंगे नए शास्त्र और संहिता
करना होगा यौनिक भेद-भाव को अलविदा
होगा नहीं किसी को कोई यौन, मनोविकार
नहीं करेगा कोई कभी किसी का बलात्कार
लिखा जाएगा जो शब्दकोष नया
होगी नहीं नारी उसमें पूज्या या भोग्या
न होगी वह जूती न कचनार की कच्ची कली
न चांद न तारा न ही हीरा मोती
न होगा हुस्न का पिजरा न विश्व-सुन्दरी का लफडा 
होगी नारी भी नारी से पहले इंसान
पुरुषों के ही सामान इंसानी पहचान
[ईमि[24.12.'12]

लल्ला पुराण ५५


इतनी बर्बर हिंसात्मक उग्रता से ६ लोगों द्वारा बस में बंद कर एक लड़की और उसके दोस्त पर हमला करने वाले ६ लड़कों के दिमाग में यह यह दरिंदगी का विचार कहाँ से आया. एक बाप ने आज नकी खबर है कि अपनी दो साल की बेटी का बलात्कार किया. इसे क्या कहा जाय? इसे पशु-प्रवृत्ति कहना पशुओं नको बदनाम करना है, पशु संबंधों में शायद गोपनीयता नहीं रहती लेकिन वे बलात्कार नहीं करते और इतने छोटे बच्चों के साथ दरिंदगी. जिन बच्चों को गोद में लेकर दुलारने का अद्भुत सुख का अनुभव होता है किसी को उसके जनानाग क्षत-विक्षत करके कोई यौन-संतुष्टि मिल सकती भाई क्या? यह अमानवीय मनोवृत्ति पैदा कहाँ से होती है? सुनते हैं मनुष्य के अंदर विवेक और अन्ततरातमा दोनों होते हैं कैसे किसी का विवेक अपनी बेटी छोडिये, किसी भी बच्ची के साथ बलात्कार की अनुमति दे सकता है और उसकी अंतरात्मा उसे रोकती नहीं? बच्ची के साथ छोड़िये क्या मिलता ही बलात्कारी को किसी मनुष्य को अमानवीय पीड़ा पहुँचाने में? यौन-संतुष्टि तो मिल नहीं सकती. क्या प्रेरणा श्रोत है इस मानसिकता का? ये सावाल बचपन से मेरे लिये असुलझ बने हुए हैं.   

Saturday, December 22, 2012

बलात्कार

आज टेलीविजन पर इंडिया गेट पर कर्फ्यू तोडते युवक-युवतियों क्र हुजूम को देखकर अच्छा तो लगा लेकिन इस असंगठित, अनियंत्रित भीड़ के मर्दवाद के विरुद्ध कारगर आंदोलन में तबदीली में संदेह है, फिर भी स्वागत योग्य है.सामूहिक  बलात्कार जैसी हैवानी मर्दानगी पर एक बहस तो चली. गाहे-बगाहे इस तरह के उन्मादी विरोध प्रदर्शन भी बेकार नहीं जाते, कभी कभी उनके अनचाहे परिणाम ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. ऐसा ही उन्मादी विरोध-प्रदर्शन मणडल-विरोधी अभियान में दिखा था और टांय-टांय फिस्स हो चुके अन्ना आंदोलन में भी. ये स्वस्फूर्त भागीदारियां युवाओं के शिक्षण मंच का  भी काम करती हैं. और आपराधिक तटस्थता से बेहतर है ज़ुल्म की इम्तिहान पर ही सही विचलित होना. जरूरत इसे मर्दवादी विचारधारा के विरुद्ध एक योजनाबद्ध अभियान का रूप देने की. आप सेलिब्रिटीज की प्रतिक्रियाएं देखिये. शर्मीला सालों से भूख हरताल कर रही है एक ऐसे काले क़ानून के खिलाफ जिसके तहत सेना किसी को मार साक्ती और गिरफ्तार कर सकती है. १२ साल पहले सेना के जवान मणिपुर में मनोरमा नाम की एक लड़की को उठा ले गए, सामूहिक बलात्कार के बाद उसके जननांगों में गोली मारकर ह्त्या कर दी. इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने के बजाय सरार दोषियों को बचाने की कोशिस कर रही है जिनका अपराध इन अपढ़ लम्पट, हैवानों से अधिक हो जाता है क्योंकि वे पढ़े-लिखे और सैन्य अकेडमी में नैतिकता और देश-भक्ति में प्रशिक्षित सैनिक जिस मनोरमा के जननांग में  गोली मारते हैं, उसी के पैसे से उनकी वर्दी और बन्दूक खरीदी जाती हैं. कश्मीर शोपियाँ में ननद-भावज दो युवतियां अपने सेब के बागान में जाती हैं और अगले दिन उनकी बलात्कृत लाशें पुलिस, सीआरएफ, सेना तीनों के शिविरों के बीच एक नाले में पायी गयी. पुलिस ने कहा "घुटने से भी नीची गहराई वाले) नाले में डूब ब्गायीं! सरकार अपराधी कोया बचा रही है. सुषमा स्वराज को इस बहादुर लड़की की हिम्मत की तारीफ़ करने की बजाय इसे "ज़िंदा लाश" बताना ज्यादा नारीवादी सहानुभति दिखती है. वे अपनी पार्टी के छत्तीसगढ़ सरकार को सोनी सोरी जैसी आदिवासी शिक्षिका और उस जैसी कितनी लाशों को नजर-ए-ज़िन्दाँ करने से क्यों नहीं रोकतीं? यह जनमानस क्यों नहीं उद्वेलित होता जब सोनी के जननांगों में पत्थर ठूंसने वाले पुलिस अधिकारी अंकित गर्ग को गणतंत्र दिवस पर पुरस्कृत किया जाता है? क्यों लड़की के बारे में "पहचान छिपाने के लिये बदला नाम" प्रक्षेपण के साथ लिखा जाता है?हैवानियत के अपराधियों की बाजे बलात्कृत लड़की को क्यों "कलंकित" मना जाता है? क्यों समाज सोचता है कि बलत्कृत (या सामाजिक वर्जानाओं के विरुद्ध स्वेच्छा से सहवास करने वाली भी) लड़की का सबकुछ नष्ट हो गया? क्या लड़की का सब कुछ टांगों के बीच ही होता है, भेजे और भुजाओं में कुछ नहीं? क्यों महिलाओं की यौन-क्रिया में भागीदारी को गाली माना जाता है? मर्दवादी लिंग-भेदभाव कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि विचार धारा है जिन्हें हम अपने रोज-मर्रा के जीवन में निर्मित और पुनर्निर्मित करते हैं. लड़ाई अंततः इस विचारधारा के विरुद्ध है जो मर्दानगी की बलात्कारी मानसिकता की जननी है.  

The rape

  I have to write an analytical article for a Hindi magazine on a brutal gang rape and physical assault on a physiotherapy student and her boy friend. Its early morning here with solitude in my bamboo-hut study but unable to start.  There have been hue and cry all around morally and socially perpetuating her pain. All the parliamentarians are shredding crocodile tears. One former communication minister and presently leader of opposition said in the parliament to show her concern, "Now there is no difference of her living and dying". Is it not a moral rape by patriarchal values. The channels are competing to increase their TRP by sensationalizing it. Instead of it being a shame on coward MCP perpetrators, why is it shame on the victim. The middle class has suddenly woken up from the slumber and demanding the death to perpetrators, as if by hanging couple of rascals, rape will stop. Rape has always been an enigma. In 2002 there were public rapes in communal pogrom of the Muslims by Hindutva fascists. It can not be sexuality that is the climax of intensity of mutuality. How can you get erection under public gaze and ...... The rapist thinks that he has ruined her and the victim too feels that she has lost everything and society keeps reminding her of that. As if the essence of a female personality lies between their legs not withstanding the plenty of of examples of women flying beyond the skies with their intellectual prowess. The final fight has to be against the ideology of gender which we create and perpetuate in our every day discourse through our phrases; idioms and other cultural practices. People have to be told that a woman is a full-fledged equal human being with her own sexuality. She is not just a passive sensuous body or sex machine. 

Friday, December 21, 2012

International Proletariat 14

Let us get out of Machiavellian princely attribute 'Dissembled Affability' and mentality of diffidence in  Hobbes's 'State  of Nature and create the world in which everyone's mind is free and the head is held high. Indian media and middle class are abuzz with the news of a brutal gang rape demanding death sentence for the rapists as if that would stop rape? The fight has to be taken against the genderized understanding of sexuality and projection of female  body as commodity in media/advertisement (What has a woman's thigh to do with the quality of a shaving razor) and in our other discourses. Why some one fucks and someone gets fucked in an absolutely mutual process of intense love making? Why not fucking with each other or why not invent new term with cherishing with cherishing instead of abusive tone and connotation? Frustrated men show masculine power by physically overpowering another human being of different sex and violating. On Debater's question, its not good or bad guys/gals keeping a gun, my question is, why there is need of gun at all? Cant we recognize equal human dignity of all and happily live without guns on the earth?     

Thursday, December 20, 2012

जो किसी खुदा को नहीं मानते


                            जो किसी खुदा को नहीं मानते

एक नास्तिक थे भगत सिंह, जिनका यह कहना है
इन्किलाबी को ज़ुल्म-ओ-सितम से लड़ते ही रहना है
तहे-ज़िंदगी लड़े वे नाइंसाफी के खिलाफ 
पा गए जवानी में ही शहीद-ए-आज़म का खिताब

हम भी जो किसी खुदा को नहीं मानते 
कोई पीर-ओ-पैगम्बर नहीं जानते
न करते है बुत-फरोशी, न यकीं अवतार में  
असंदिग्ध निष्ठा है जिनकी इंसानी सरोकार में

उठाते ही हैं हाथ वे हर ज़ुल्म के खिलाफ
बुलंद इरादों और ऊंची आवाज़ के साथ
क्योंकि वे नहीं मानते किसी खुदा का इन्साफ
धरती पर ही माँगते हैं धरती के ज़ुल्म का हिसाब 

-- ईमि[२१.१२.१२]

एक पुरानी कविता


नारी
--ईश मिश्र --
दुनिया में शान्ति थी,था सामंजस्य और सदाचार
सुनकर नारी की ललकार,मच गया है हाहाकार
हो गया अनर्थ कर दिया नारी ने आजादी का इज़हार
कर दिया उसने जूती/धरती; देवी/भोग्या बनने से इनकार

कहती है अब उसे आजादी चाहिये
मर्दवाद की बर्बादी चाहिए
धंन धरती भी आधी चाहिये
शिक्षा, शासन में उपाधि चाहिए

यह देखो कलयुग का हाल
औरत चलती अपनी चाल
अब नहीं बनेगी किसी का माल
क्या होगा इस देश का हाल
20.12.2012
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Wednesday, December 19, 2012

अभागा है पुरुष


अभागा है पुरुष

समता का सुख से अनभिज्ञ अभागा है पुरुष
प्रिया के सखी होने के आनंद से अपरिचित, अभागा है पुरुष
नाकाब्पोशी के चलते बच्चों की दोस्ती से वंचित, अभागा है पुरुष
नारी चेतना के उत्थान से बौखलाता, अभागा है पुरुष

किन्तु उठी है जो नारी-चेतना की उमडते समंदर की लहर
बरपाएगी ही एक दिन मर्दवादी वैचारिक दुर्ग पर कहर
 झूमती दरिया से उट्ठी है जो नारीवादी शिक्षा, दावेदारी
बौखला उट्ठी है मर्दवादी पिल्लों की पूरी बिरादादारी

इन युवतियों के सीने में धधकती पीड़ा की ज्वाला
बनने को उद्द्यत है आग का दावानली गोला
तोडेगा जो भी बराबरी के हक की साख
हो जाएगा जलकर इतिहास के कूडे की राख
--- "ईमि"(ईश मिश्र ) [गुरुवार, 20 दिसम्बर 2012]

Tuesday, December 18, 2012

International Proletariat 13

Race is not an attribute of biology nor is it any eternal idea that has traveled to us through generations. Race is not an idea but like gender, is an ideology that is constructed and reconstructed in our every day life chorus. The first ever great ideologue of race was constructed by the ancient Greek philosopher, Aristotle, the greatest defender of all kinds of inequalities including gender and the fore father of all the subsequent  philosophers of inequalities. He invented the racism to defend the prevailing, inhuman  institution of slavery by dividing the world into Hellenes and barbarians. Aristotle reappeared in the form of US racist historians and intellectuals in 18th century America to recreate the ideology of race to justify the barbaric institution of slavery when the slave labour became the basis of American prosperity that had begun to take shape on the basis of English indentured labour with the same color of skin. During the civil war, both, the supporters and opponents of slavery concurred on the point the Blacks were slaves due to their own deficiencies. Despite the laws, the ideology of race still persists in the US as demonstrated  by Rodney King case in 1992, thew year of  celebration of  500 years of slavery inaugurated by that plunderer Spaniard named Columbus. In US there is beauty competition and there is black beauty competition. 

Saturday, December 15, 2012

शब्द



शब्द 
ईश मिश्र 

शब्द बेचैन करते हैं
कुछ शब्द तो बहुत बेचैन करते हैं 
बेचैनी गवाह है ज़मीर की मौजूदगी की 
कराती है एहसास अंतरात्मा की अतल गहराइयों की 
बेचैनी अंतरात्मा का गुण है दोष नहीं 
वैसे ही जैसे शर्म है एक क्रांतिकारी एहसास 
   [26.06.05]

दलित विमर्श ४

इसीलिये तो कह रहा हूँ कि शिक्षा के विस्तार के साथ उम्र और अवसरों की छूट समाप्त कर देनी चाहिए जिससे युवा दलित/आदिवासी/पिछड़े युवक- और युवतियों को अवसर मिले जो ज्यादा दिन तक समाज को अपनी सेवा दे सकें. मुझे यह भी लगता है कि आरक्षण को व्यापकता देने के लिए एक अनारक्षण की प्रक्रिया भी शुरू होनी चाहिए. राजनैतिक और प्रशासनिक उच्च पदों पर आरक्षण का लाभ ले चुके लोगों को २-३ पीढ़ी बाद स्वतः स्वतः आरक्षण का लाभ छोड़ देना चाहिए. लेकिन हमारे देश जहां आरक्षण के लाभ के लिए लोग पिछडा/दलित/आदिवासी की मान्यता के अभियान चलाते हों, वहाँ स्वतः तो कोए छोडेगा बहीं इसलिए इस बावत संवैधानिक प्रावधान बनाना चाहिए. मेरा एक जीन्यू का परिचित है और पिछड़ी घोषित जाती में पैदा हुआ लेकिन उसके दादा न्याधीश थे और पिटा वाकल हैं. वह आरक्षण का लाभ लेकर शायद आईएएस बनाता लेकिन उसने इसे अनुचित समझा और बिहार में आईपीएस है. उसका रोना था तब भी लोगों ने पोस्टिंग के लिए उसकी जाती का पता कर लिया.

मां


मां
ईश मिश्र 

मां  तुम्हारी ज़िंदगी इतनी त्यागमय थी
कष्टकारी मौत इतनी जल्दी क्यों?
देखता था बचपन में तुम्हारी तकलीफें
  बड़ा होकर दूर करने की रखता था उम्मीदें 
मैं होने लगा बड़ा तुम्हारी सीख के साथ  

तुमने सिखाया अच्छा इंसान बनो  
और इसके लिए जरूरी है समझदार बनो
बनने के लिए समझदार जरूरी है 
करो हर बात पर   बेख़ौफ़ सवाल  
डरों मत किसी से
न भूत से न भगवान से 

मैं बड़ा होने लगा 
समाज के क़ानून पर सवाल करने लगा 
लोगो ने  कहा मैं रहा था रास्ते से भटक
मैं चलता रहा लेकिन तुम्हारी सीख पर बेखटक 

मैं बड़ा होता गया बचपन खोता गया मगर 
करता गया सवाल हर बात पर 
अपने धर्म-कर्म-विरासत पर 
भूत और भगवान के वजूद पर 

इतने सवाल लोगों को नागवार लगे 
सारे मठाधीश  करने पलटवार लगे
चेले भी उनके होने लगे नाराज़ 
नाराज़ हुए सारे भगवान और भूतराज 

सबने  मेरे पागल होने का ऐलान कर दिया
 मैंने तेज सवालों का अभियान कर दिया
मैं करता रहा बेख़ौफ़ सवाल
झेलता रहा सारे बवाल 

मैं बड़ा होता गया करते हुए सवाल
हुए नहीं कम तेरी ज़िंदगी के जंजाल
काश मिल जाती तुम फिर एक बार 
दूर कर देता कष्ट तुम्हारे इस बार 

मां भी मिलती है एक ही बार जीवन की तरह 
तुम एक महान मां थी हर मां की तरह 
लेकिन एक विराट-ह्रदय  इंसान भी थी 
विरले इंसानों के तरह 
[31.03.2005]

Go to hell & Feel good



IN 2004 Parliamentary elections when BJP was carrying on INDIA SHINING  campaign, I planned an article that  did not happen instead I wrote this. 

Go to hell & Feel good
Ish Mishra

India is great, feel good
Don’t think just feel good
Never think about good or bad just feel good
Feeling good is matter of belief not thought
Rousseau said,
“Everyone shall be forced to be free “

Freedom is antithetic to the beauty of inequality
Just as the slums of Jagmohan’s Delhi
Is to the patriotic aesthetic sense
Let the people go to hell
India is great, feel go
Patriotism is great, feel good
Feeling good is always good
Feel and just feel, feel good,.

”I have turned Rousseau upside-down
“Everyone shall be forced to feel good”
Uncle Sam has said, feel good
Don’t think, just feel good
I am the dummy of Uncle Sam, feel good
I am the sole spokes person of patriotism, feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

Uncle Sam wishes everyone to feel good
I am the echo of Uncle Sam, feel good
I am a soldier of Lord Rama, feel good
The enemies of Sam are the enemies of Ram
The enemies of Ram are the enemies of nation
Hate the enemy and feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good
I shall force everyone to feel good

Everything is fare in love and war
Modis and Togarias are the heroes
They kill the enemies in the mother’s womb
Their heroics shall shin in the annals of the history
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good
I shall force everyone to feel good

Patriotism is cultural not political
Hindutva is patriotism and vice-versa
Savarkar is great, feel good
I am Savarkar’s incarnation
I am the Swayamsewak Raja, feel good
I am doing my Rajdharma, feel good
I am spreading the message of feel good
Hate the enemy and feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force you to feel good.

With the grace of Uncle Sam
IMF-World Bank is my Khuda
Feel very, very and very good
Indebtedness is the wish of God
And the concern of future generations
We don’t need to worry,
Don’t worry, just feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force you to feel good.

The company has come back with global might
To give us developmental insight
No needs of Lord Clive, feel good
The Sirajuddaulas have become Mir Zaffars
Company shall take care of all the problems
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

Questioning is a dangerous for feeling good
Ask no questions you shall be told no lies
Feel good is a factor and a matter of faith
Factor is a matter of feeling not of not of explaining
Faith has no scope for questioning
India is shinning, feel good.
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

The poor creates slums to destroy the beauty
Slums are blot on shining India
I have bulldozing Jagmohans
The slums shall be bulldozed, feel good
I promised to remove poverty
The cause of poverty is the poor itself
I have substantially removed the cause
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

The well fed is deliberative and unfaithful
Ours is a country of faith
Hunger is great, feel good
Poor is nice and faithful
Poverty is great, feel good
Uncle Sam is great, feel good
Lord Ram is great, feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

I asked the people for a chance to serve the fatherland
With the blessings of Uncle Sam and lord Ram
I got the opportunity and been feeling good
I changed the meaning of the governance
Our gods are on Capitol hills, feel good
Uncle Sam has issued dictates, feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

I changed the meaning of the words
I created new words
There is no selling out the country but disinvestment
Disinvest the nation and feel good
I have kept pace with the globalizing world
I have done away with the welfareism
The fittest should survive and unfit should perish
I have made the unfit to commit suicide, feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

The global giants shall ensure the survival of the fittest
There was one East India Company to civilize
I have brought in many to develop, feel good
The history has ended, feel good
Dreams are dangerous for shining India
I have trampled the futuristic dreams for reforming the past
Past is great, feel good
Future is bright with the grace of Lord Ram and Uncle Sam
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

India is shinning, feel good
The iron men is on high tech, Bharat Uday Yatra, feel good
Shinning and Uday are the matters of faith
The faith is the subject of worship not reason
Reason breeds questions
Questions are antithetic to faith
Have faith in and worship the shinning India
March with the iron man in the Uday Yatra and feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

I have dismantled the Babari Masjid, feel good
I have annihilated the enemies and traitors
I have disgraced the women of the enemy, feel good
With the blessings of Lord Ram and grace of Uncle Sam
I have razed the Masjids and Mazars
And allotted the plots to Hulladia Hanumans and Godharia Hanumans
My mission is not yet complete
I have yet to build the Ram temple
The country is yet to be fully disinvested
Give me another chance to complete the unfinished task
I have may more Modis and Togarias
I will create many more Gujrats
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

I punished the Bangaroos and Joodevs for their carelessness
Though they were collecting the treasures for shinning India
I have taken care of cameras, which caught them
There shall be no more such cameras, feel good
I have done everything to make you feel good
I have banned the strikes
To accelerate the pace of shining india
I have given hire and fire rights
I have abolished the laborer’s rights
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

I am not far behind Hitler and Mussolini, feel good
I ask for one more chance to catch-up with them
I shall dwarf the people to make India grea
We have brought in the POTA, feel good
Uncle Sam has come, feel good
Go to hell and feel good
India is great, feel good
Feeling good is always good
I shall force everyone to feel good

[Saturday, March 27, 2004]