विचार मुक्त होना मानवीय गुण से मुक्त होना है. मनुष्य ने अपनी आजीविका उद्पादन के श्रम की कला और कौशल से अपने को पशु-परिवार से अलग किया और श्रम की कला चिंतन-शक्ति से आती है. लेकिन तमाम लोग किसी खास विचारधारा की मिथ्या-चेतना से अपनी चिंतन-शक्ति का इस्तेमाल नहीं करते और भेडचाल में लकीर पर चलते रहते हैं. विचार-मुक्त होना कौशल नहीं है बल्कि मष्तिष्क को बेरोजगार कर देना है.
Words acquire meaning through usage. The concept of Nirvana that acquired popularity through Buddha's teachings that means freedom from the cycles of rebirth. The mythological notion of rebirth was created by ruling class intellectuals to distract from the miseries of this world. The rational way of thinking leads to profound thought and not freedom from it. The self actualization is an intellectual process that comes by knowing one's nature and ways to realize it that comes from totally involved thinking and not from freedom from it. What determines anyone's strong will power and correct mind set? it is generally used for social parasites - the Sadhus and sanyasis who are bereft of any rational thought and propagate ignorance and irrationality. And profound peace of mind is a myth, relative peace of mind is attained by unselfish rational thought process and not by renouncing it. But tragically most of us do not fully use our mind and direct our actions in accordance with established social values, traditions and customary laws under the historical illusion that the ancestors must have been wiser. I am saying historical because the law of the dynamics of history bis continuous progressive advancement. Every next generation is always smarter as it critically consolidates the achievements of previous generations and builds upon it. The societies that do not do so stagnate. For over thousand years India intellectually stagnated under the garb of spiritual accomplishment. Freedom from thinking is freedom from one's human attributes.
@Prag Garg: जी हाँ राष्ट्रीयता के कालम में लिखते हैं इंडियन क्योंकि वह मेरी भौगोलिक-राजनैतिक अस्मिता है. लेकिन खेल के मैदान में इंडिया नहीं होता बल्कि दसवीं-बारहवीं पास ११ लड़के होते हैं जिन्हें इसी उम्र से इतना रूपया दिखने लगता है कि 'चक दे इंडिया' की नारेबाजी में उन्हें यह भी नहीं मालुम कि इस गरीब मुल्क में २०-२२ साल की उम्र में हजारों करोड़ रूपये का क्या सदुपयोग करेंगे निजी ऐयाशी के अलावा? उन्हें यह नहीं बताया जाता कि एक ज़िंदगी के लिये असीम रूपये की जरूरत नहीं होती. आईपीएल में खेलने के लिये कितने क्रिकेटरों ने अपने "राष्ट्रीय" अनुबंध ओ नज़र-अंदाज़ किया? केविन पीटरसन को दक्षिण अफ्रीका टीम में जगह मिलती तो वह इंग्लैण्ड के लिये खेलने क्यों जाता? राष्ट्र राज्य पूंजीवाद का राजनैतिक कवच है आधुनिक राष्ट्रवाद उसकी विचारधारा. इसी तरह के क्रिकेट-उन्मादी और युद्धोन्मादी राष्ट्रवाद की गफलत में लोग गर्व और शर्म करें, भूमण्डलीय पूंजी के दलाल देश को नव-उपनिवेशवाद के तार्किक परिणति तक बेख़ौफ़ पहुंचाते रहें. जी हाँ क्रिकेट में जो भी अच्छा खेलता है मैं उसका प्रशासक हूँ चाहे वह विरत कोहली हो या क्रिस गेल; सुनील गवास्कर हों या इमरान खान. लेकिन वहीं तक मैं न्हें भारत/वेस्ट-इंडीज/पाकिस्तान नहीं मानता हूँ. विराट कोहली के छक्के की उतनी ही तारीफ़ करता हूँ जितनी मोहम्मद हफीज की. "हिन्दुस्तान भी मेरा है, पाकिस्तान भी मेरा है/दोनों ही देशों में लेकिन अमरीका का डेरा है." (हबीब जालिब) 2/10/12
Words acquire meaning through usage. The concept of Nirvana that acquired popularity through Buddha's teachings that means freedom from the cycles of rebirth. The mythological notion of rebirth was created by ruling class intellectuals to distract from the miseries of this world. The rational way of thinking leads to profound thought and not freedom from it. The self actualization is an intellectual process that comes by knowing one's nature and ways to realize it that comes from totally involved thinking and not from freedom from it. What determines anyone's strong will power and correct mind set? it is generally used for social parasites - the Sadhus and sanyasis who are bereft of any rational thought and propagate ignorance and irrationality. And profound peace of mind is a myth, relative peace of mind is attained by unselfish rational thought process and not by renouncing it. But tragically most of us do not fully use our mind and direct our actions in accordance with established social values, traditions and customary laws under the historical illusion that the ancestors must have been wiser. I am saying historical because the law of the dynamics of history bis continuous progressive advancement. Every next generation is always smarter as it critically consolidates the achievements of previous generations and builds upon it. The societies that do not do so stagnate. For over thousand years India intellectually stagnated under the garb of spiritual accomplishment. Freedom from thinking is freedom from one's human attributes.
@Prag Garg: जी हाँ राष्ट्रीयता के कालम में लिखते हैं इंडियन क्योंकि वह मेरी भौगोलिक-राजनैतिक अस्मिता है. लेकिन खेल के मैदान में इंडिया नहीं होता बल्कि दसवीं-बारहवीं पास ११ लड़के होते हैं जिन्हें इसी उम्र से इतना रूपया दिखने लगता है कि 'चक दे इंडिया' की नारेबाजी में उन्हें यह भी नहीं मालुम कि इस गरीब मुल्क में २०-२२ साल की उम्र में हजारों करोड़ रूपये का क्या सदुपयोग करेंगे निजी ऐयाशी के अलावा? उन्हें यह नहीं बताया जाता कि एक ज़िंदगी के लिये असीम रूपये की जरूरत नहीं होती. आईपीएल में खेलने के लिये कितने क्रिकेटरों ने अपने "राष्ट्रीय" अनुबंध ओ नज़र-अंदाज़ किया? केविन पीटरसन को दक्षिण अफ्रीका टीम में जगह मिलती तो वह इंग्लैण्ड के लिये खेलने क्यों जाता? राष्ट्र राज्य पूंजीवाद का राजनैतिक कवच है आधुनिक राष्ट्रवाद उसकी विचारधारा. इसी तरह के क्रिकेट-उन्मादी और युद्धोन्मादी राष्ट्रवाद की गफलत में लोग गर्व और शर्म करें, भूमण्डलीय पूंजी के दलाल देश को नव-उपनिवेशवाद के तार्किक परिणति तक बेख़ौफ़ पहुंचाते रहें. जी हाँ क्रिकेट में जो भी अच्छा खेलता है मैं उसका प्रशासक हूँ चाहे वह विरत कोहली हो या क्रिस गेल; सुनील गवास्कर हों या इमरान खान. लेकिन वहीं तक मैं न्हें भारत/वेस्ट-इंडीज/पाकिस्तान नहीं मानता हूँ. विराट कोहली के छक्के की उतनी ही तारीफ़ करता हूँ जितनी मोहम्मद हफीज की. "हिन्दुस्तान भी मेरा है, पाकिस्तान भी मेरा है/दोनों ही देशों में लेकिन अमरीका का डेरा है." (हबीब जालिब) 2/10/12