Thursday, June 2, 2011

क्रांति का नशा

क्रांति का नशा
ईश मिश्र
बेहतर है क्रांति का नशा भ्रांति के नशे से
चुनना ही है गर कोई एक इन दोनों में से
एक देता है गगनचुंबी उड़ान, तब्दीली के खयालो को
दूजा ढकेलता है रसातल में निरासा के
छोड़ कर पीछे सारे विप्लवी सवालों को
एक देखता है इंक़िलाबी ख्वाब आर-पार की लड़ाई से
दूजा देखता है इंक़िलाब गठजोड़ में सरमायेदारी से
ईमि/02.06.2011]

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