Thursday, June 30, 2011

चवन्नी पर चर्चा के बहाने

चवन्नी पर चर्चा के बहाने
मित्रों
संचार-क्रान्ति ने साहित्य की एक बहुत महत्वपूर्ण विधा -- पत्र-लेखन -- समाप्त कर दिया. इतिहास के साहित्यकारों, दार्शनिकों और चिंतकों के के पत्राचार तमाम विषयों के शोध के प्राथमिक स्रोत हैं. उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम अर्धांश के अंतिम दशकों में जब मार्क्स और एंगेल्स, सर्वहारा के रूप में, इतिहास के नए नायक के आगमन की घोषणा की तो अराजकतावादी, समाजवादी प्रूदों ने एक पुस्तक --दरिद्रता का दर्शन-- के रूप में एक सार्वजनिक ख़त लिख डाला. मार्क्स भी कहाँ पीछे हटने वाले, उन्हेंने भी दर्शन की दरिद्रता लिख कर जवाब दिया. प्रकृति की गति का द्वंदात्मक नियम है कि चवन्नी और पत्र-लेखन की तरह जो भी अस्तित्ववाब है उसका अंत निश्चित है. रह जाती हैं उनकी कहानिया .लेकिन निर्वात नहीं रहता. पुराने की जगह नया लेता है और कुल मिलाकर गाडी आगे ही बढ़ती है, इतिहास की गाडी में बैक गीअर नहीं होता. पुरातन का अवसान और नवीन के आगमन की जहानी उनके राजनैतिक अर्थशास्त्र के पर्प्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है जिसे कुछ टिप्पणियों में जगदीश्वर जी ने उसे बहुत ही यान्त्रीय ढंग से रखा है जो मार्क्सवाद की उनकी सीपीयम टाईप अवसरवादी प्रति-क्रांतिकारी समझ का परिणाम है.

फेसबुक जैसे वर्चुअल मंचों ने पत्राचार द्वारा वैचारिक आदान-प्रदान के अवसान पर उसका मर्शिया पढ़कर उसके इतहास पर चर्चा करने और नए ढंग से वैचारिक आदान का एक बेहतर विकल्प पेश किया है. आइये हम इस मंच का उपयोग सार्वजनिक पत्राचार के लिए करें.मै अगली पोस्ट चवन्नी से सम्बंधित अपने संस्मरण पोस्ट करूंगा उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में .

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