Tuesday, June 21, 2011

शांत ज्वाला

शांत ज्वाला
ईश मिश्रा
यह जो शांत सी मुस्कराती बाला है
अन्दर से साक्षात विप्लवी ज्वाला है
गाती है जब इंक़िलाबी गीत
हो जाते हकीम-ओ-हुकुम भयभीत
लगाती है जब विद्रोह के नारे
बौखला जाते हैं हरामखोर सारे
निकलती है जब भी जन-गण को जगाने
पहुंच जाते सारे दलाल और जरदार थाने
करने को शांत उसकी आवाज़ बुलंद
अपनाते हैं ये साम-दाम-भेद-दंड
होती जो अकेली, हो गई होती एक लाश नामालुम
लेकिन साथ है उसके नंगे-भूखों का हुजूम
21.06.2011

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